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राज-(राज+मिस्), भिस् =हि, हि, हिं (3/7) (3/16) (3/124)
(राई+हि, हि, हिं) =राईहि, राईहि, राईहिं (तृतीया बहुवचन) --(राज+भ्यस्), भ्यस्=तो, ओ, उ, हिन्तो, सुन्तो (3/16) (3/9)
(3/124) (राई+तो, प्रो, उ, हिन्तो, सुन्तो)=राईत्तो-राइत्तो, राईप्रो, राईउ,
राईहिन्तो, राईसुन्तो (पंचमी बहुवचन) -(राज+पाम्), पाम् =ण (3/124) (3/6) . (राई+ण)=राईण
(षष्ठी बहुवचन) -(राज+सुप्) सुप्→सु (3/16), (3/15), (3/124) राई +-सु-राईसु
(सप्तमी बहुवचन)
54. प्राजस्य टा-ङसि-ङस्सु सरणारगोष्वण 3/55
प्राजस्य टा-सि- ङस्सु सणाणोष्वण् [ (स) - (णा)+(णोषु)+ (अण्)] प्राजस्य (आज) 6/1 [(टा)-(ङसि)-(डस्) 7/3] स युक्त (णा) - (गो) 7/3] अण् (अण्) 1/1 (प्राकृत में) (राज से परे) टा का रणा से युक्त होने पर, इसि और ङस् का णो से युक्त होने पर (राज में निहित) आज के स्थान पर प्रण (विकल्प से) हो जाता है । राज से परे टा (तृतीया बहुवचन के प्रत्यय) के णा से युक्त होने पर, इसि (पंचमी एकवचन के प्रत्यय) और ङस् (षष्ठी एकवचन के प्रत्यय) के णो से युक्त होने पर राज में निहित प्राज के स्थान पर प्रण विकल्प से हो जाता है। दूसरे प्रत्ययों का टा, सि, ङस से युक्त होने पर प्रण नहीं होता ।
राज-(राज+टा) = (राज+णा) = (रण्+णा) = रण्णा
(तृतीया एकवचन) (राज+ ङसि) = (राज+णो) = (रण्+णो) = रणो
___ (पंचमी एकवचन) (राज+ङस्) = (राज+णो) = (रण्+णो) = रण्णो
(षष्ठी एकवचन)
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[ प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ
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