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10. डे म्मि : 3/11
डे (डे) 1/1 म्मि (म्मि) 1/1 : (ङि) 6/1 (प्राकृत में) डि के स्थान पर डे→ए और म्मि (होते हैं)। अकारान्त पुल्लिग शब्दों में कि (सप्तमी एकवचन के प्रत्यय) के स्थान पर ए और म्मि होते हैं। देव (पु.)-(देव+ङि)=(देव+ए, म्मि)=देवे, देवम्मि (सप्तमी एकवचन)
11. जस्-शस्-सि-तो-दो-द्वामि दीर्घः 3/12
जस्-शस्-ङसि-तो-दो-[(दु)+ (मामि)] दीर्घः [(जस्)-(शस्)-(ङसि)-(तो)-(बो)-(दु)-(प्राम्) 7/1' दीर्घः (दीर्घ) 1/1 (प्राकृत में) जस्, शस्, ङसि और (पंचमी बहुवचन के प्रत्ययों में से) तो, दो→ो , दु→उ तथा प्राम् परे होने पर दीर्घ (हो जाता है) ।। अकारान्त पुल्लि ग शब्दों में जस् (प्रथमा बहुवचन के प्रत्यय), शस (द्वितीया बहुवचन के प्रत्यय), इसि (पंचमी एकवचन के प्रत्यय) और (पंचमी बहुवचन के प्रत्ययों में से) त्तो, मो, उ तथा प्राम् (षष्ठी बहुवचन के प्रत्यय) परे होने पर दीर्घ हो जाता है। देव (पु.)-(देव+जस्), जस्=० 3/4
(देव+जस्)=(देव+.) = देवा (प्रथमा बहुवचन) (देव-+शस्), शस्= 3/4 (देव+शस्)=(देव+०)=देवा (द्वितीया बहुवचन) (देव+सि), इसि- तो, ओ, उ, हि, हिन्तो, 3/8
(देव-+-सि)= (देव+त्तो)=देवात्तो-देवत्तो (पंचमी एकवचन) दीर्घ स्वर के आगे यदि संयुक्त अक्षर हो तो दीर्घ स्वर का ह्रस्व हो जाता है। (ह्रस्वः संयोगे 1/84)। (देव + ङसि)= (देव-प्रो) = देवानो (पंचमी एकवचन) इसी प्रकार देवाउ, देवाहि, देवाहिन्तो, देवा (पंचमी एकवचन)
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[ प्रौढ प्राकृत रचना सौरम
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