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4. प्रमोऽस्य 3/5
अमोऽस्य [ (अमः)+ (अस्य)] प्रमः (अम्) 6/1 अस्य (अ) 6/1 (प्राकृत में) अम् के प्र का (लोप होता है) (और 'म्' शेष रहता है)। मोनुस्वार 1/23 [ (मः)+ (अनुस्वारः) ] मः (म्) 6/1 अनुस्वारः (अनुस्वार) 1/1 'म्' का अनुस्वार (-) (होता है)। अकारान्त पुल्लिग शब्दों में प्रम् (द्वितीया एकवचन के प्रत्यय) के 'प्र' का लोप हो जाता है और बचे हुए 'म्' का अनुस्वार (-) हो जाता है ।
देव (पु.)- (देव+अम्)=(देव+म्)=(देव+-)=देवं (द्वितीया एकवचन) 5. टा-सामोरणः 3/6
टा-सामोर्णः [ (प्रामोः)+ (गः)] [ (टा)- (प्राम्) 6/2] णः (ण) 1/1 (प्राकृत में) टा और ग्राम के स्थान पर रण (होता है)। अकारान्त पुल्लिग शब्दों में टा (तृतीया एकवचन के प्रत्यय) और पाम् (षष्ठी बहुवचन के प्रत्यय) के स्थान पर ण होता है । देव (पु.)-(देव+टा)=(देव+ण)
(देव+आम्) = (देव+ ण) भिसो हि हि हि 3/7 भिसो हि हिँ हि [ (मिसः)+ (हि)-(हिं)-(हिं) ] भिसः (भिस्) 6/1 हि (हि) 1/1 हिं (हिँ) 1/1 हिं (हिं) 1/1 (प्राकृत में) भिस् के स्थान पर हि, हिं और हिं (होते हैं)। अकारान्त पुल्लिग शब्दों में भिस् (तृतीया बहुवचन के प्रत्यय) के स्थान पर हि, हिं और हिं होते हैं। देव (पु.)-(देव+भिस्)=(देव+हि, हि, हिं)
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[ प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ
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