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संज्ञा-सर्वनाम-संख्यावाची शब्द-सूत्र 1. अतः सेोः 3/2
प्रतः से?: [ (सेः)+ (डो:)] प्रतः (प्रत्) 5/1 से: (सि) 6/1 डोः (डो) 1/1 (प्राकृत में) प्रत् से परे सि के स्थान पर डो→प्रो (होता है)। अकारान्त पुल्लिग शब्दों से परे 'सि' (प्रथमा एकवचन के प्रत्यय) के स्थान पर 'प्रो' होता है। देव (पु)- (देव+सि)=(देव+ो)= देवो (प्रथमा एकवचन)
वैतत्तदः 3/3 वैतत्तदः [ (वा) + (एतत्) + (तद:)] वा=विकल्प से [(एतत्) - (तदःततः) 5/1] एतत् और तद्→तत् से परे (सि के स्थान पर) विकल्प से ('प्रो' होता है ।) एतत्→एस और तत्-स से परे सि (प्रथमा एकवचन के प्रत्यय) के स्थान पर विकल्प से डो→यो की प्राप्ति होती है । एत (पु.) - (एतत् →एस) (एस+सि)=(एस+०, प्रो)=एस, एसो
(प्रथमा एकवचन) त (पु.)-(तत्→स) (स+सि)=(स+०, ओ)=स, सो (प्रथमा एकवचन)
3. जस्-शसोलुंक 3/4
जस्-शसोलुंक [ (शसोः)+(लुक्) ] [ (जस्) - (शस्) 6/2 ] लुक् (लुक्) 1/1 [प्राकृत में] जस् और शस् के स्थान पर लोप (होता है)। प्रकारान्त पुल्लिग शब्दों में जस् (प्रथमा बहुवचन के प्रत्यय) तथा शस् (द्वितीया बहुवचन के प्रत्यय) के स्थान पर लोप→० होता है । देव (पु.)- (देव+जस्)- (देव+०)
__(देव+शस्)-(देव+०)
प्रौढ प्राकृत रचना सौरम ]
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