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पाट तेनच प्रत्येकं द्विसहसं हुने तूप हदोष रोगाश्वाभिन्तर व्याधयश्वन भवंति प्रयोगांतरं दशाधिकशतैः पयोयुक्तै अश्वदूर्वा येह ने दिन मुखे विभुंनर हरिविचिंत्यान ले अवासन दीर्घमायुर खि लै र्विमु लोग दैः सुखी भवति नान वो नि जकले त्र पुत्रादिभिः अयमर्थः स हस्त संख्यं पयोष्ट तयुक्तैर्दूर्वा निकै हुने दिन इतिगीर्वाणें द्र विरचितेषु पंचसारसंग्र हे त्रयोविंशतिः पटलः ॥ अथन्ट सिंह मंत्र संगान् कल्पांरो कन्द सिंह मंत्रांतर मुच्यते नरसिंहम हा सिंह ज्वाला माला नलानन रोगानशेषान्मूतेशखा देखा दाग्नि लोचन इर्तिमन्त्रः अनुष्टु वत् अंग ऋष्यादि । अथन सिंह मंत्र प्रसंगात् कल्पांत रो कंन्ट सिंहसंध्या वंदन मप्यत्र योग्य ता व शाल्लिख्य ते शिवं गुरुं गणेशं प्रणम्य पर देवतां करोमि न्द हरेः स म्यक् मन्त्राराधनपद्धतीं तत्र श्रीमान् साथ कें दो ब्राह्मे मुहूर्ते उत्थाय प्रसालित पाणिपादमुखः प्राङ्मुख उदङ्मुखोवा उ पविश्यगुर्वादि बंदन पूर्व के प्राणाना यम्य से कली हत्य देवतां ध्यात्वामान संसंपूज्य गतदिवस (सवेभगवतः पाद मूले समर्प्य ॥ तस्मिन्दिनेकरिष्यमाणस्याननां लब्ध्वान सिंह स्तोत्रप उनपुरः स रंखानार्थे वहिर्निर्वर्त्य आवश्यक शौचाच मनपूर्वकं अस्त्रेण मदेख निलाह दयेना हाय शिरसाजल गोधिते तीरे निधाय शिखया शर्करा दि क मुद्धृत्य कवचे तात्रे ||धा विभज्यने त्रेण निरौ स्य तत्रै के ने भागेन पाणिपादमुखानि प्रक्षाल्यां परेणस वगान्या लिप्य निमज्य मूलं कि तो तसं
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