Book Title: Prapanchasara Sangraha
Author(s): Giryanendra Saraswati
Publisher: Giryanendra Saraswati

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Page 682
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir प्र.सं.||स्तंभनार्य हरिदारजोभिः सहसंजहोत॥प्रयोगांतरे।भुजंगगणभूषणंभुजगत त्रिशलाहतस्वशत्रुरुधिरोक्षितम ३४० दभालनेत्रा नलम्॥दिगंबरम-स्मरन्जपतुवीरभद्मनं निशीथसमयेशनशितमनिनिहतंरिपं॥अथवीरभद्र बलिपकारः।।अतःपरंप्रवरसतेमनोरमयष्यसंग्रहात्।बलिकमोविपा नतोहितायमन्त्रजापितम्॥रुत्वागोभयस! लिलैःस्थंडिलम स्मिन्निलिख्ययंत्रवरम्॥ वीरेश्वरस्यभूयोरजो भिरापूरयेक्रमान्मन्त्री॥पीतेममध्यमरूणेनचको गषठकस्सामेनसंधिमरुणेनदलाष्टकेचासलनसंधिमसितेनकगेहरंघसीताःसीतेनसकलाःपरिपूर्यप श्वात्। अस्यार्थः।अत्रयंत्रलेखनप्रकारोपि॥पीतेनमध्यमित्यादिनादतः।तत्रकर्णिकादिस्थानेषमन्चने कैकंदले त्रिशस्त्रिशः।तत्रपीतादिद्याणिएवविंशति पटलेसुदर्शनविधानेउक्तानि॥पुनः बलिमंज्लम स्यचदक्षिणतःविधायचतर्पतषष्ठि पम्॥सितपाटलपीतरजोभिरयोपरिपूर्यचनहौंदतितलिखेत्॥ तत्रसितादिद्रव्यंखंड क्रमेणेत्यर्थः॥ अस्योत्तरेपंकजमएपविलिख्यतत्परितोदिसापद्यानिशालीःप्रणि पायतेषुपीटादिकंत त्रनिघायतस्मिन्॥अरुणांशुकतंदुलाहिपत्रक्रमकासिप्रतीनिधायभूयः॥विधिना | रामः चरमामुपास्यसंध्यामथसर्वधगुरूनगणाधिपंच॥अस्लेणतालत्रितयंचरुलावायादिवीजैरपि देहराडिम्॥म २४० For Private And Personal

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