Book Title: Prapanchasara Sangraha
Author(s): Giryanendra Saraswati
Publisher: Giryanendra Saraswati

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Page 744
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir प्र.सं. नः ॥ अनेनैव विधानेनरिपुर्मूत् प्रियोभवे त् ॥ कर्माण्येतानि कुर्वी तदिवसे नतु रात्रिषु ॥ पश्चिमामुख लिंग ३७१ सजीवमहिषंपुनः । निखाय तस्प शिर सिकंडं कत्वात्रिकोणकं ॥ तस्मिन् समे पीते वन्हौ कार रुक र समुद्भवा न् ॥ स त्रिकोणास मंन्त्रार्णान्साध्य नाम समन्वितान् ॥ अजर तेन संसिकान्कारस्कर समिद्धरान्। सह लांज्जुहुया हेवी ध्यात्वासविन्द मंडले ॥ प्रलयाग्निसमां घोरां द्वात्रिंशद्भुज शोभिताम् ॥ उद्यदायुधसं दाशान्टसंती सिंहराम स्तके ॥ म हा दंष्ट्रांम हाभीमांज्वलत्केशीं न दन्मुखीम् ।। रक्ताई मांस व दनांघूर्णिताग्रत्रिलोचनम्॥ अनेन विधि नाशत्रुर्महाज्वर निपीडिताः। विमुंचतिनिजं देहंपुत्र मित्रादिभिः सह ॥ ऊर्ध्व मुलां भसो मन्त्री लं बगिला भुजंग मम् ॥ भानुविंग तांदुर्गासहह्लादि ससंनिभाम् ॥ सहस्त्रपाणि चरणांसहसासि शिरोमुखीम् ॥ सहस्र नाग बह्मागां त्रासयं तीं जगत्रयीं ॥ ध्यायन्नने नसर्पास्यतर्पयेदुष्णवारिणा॥संयनः कालपाशेन वैरीमं चे तख जीवितं ॥ मध्यान्हा कयुत प्रमानंदतींनर सिह वत् ॥ घोरसिंह समासी नांम हा भीषण दर्श नाम् । शू लेप्रोता हितान्ध्याय जपेन्मन्त्र मनन्यधीः ॥ तर्पयेदुष्णतोये न सर्प वदिनत्रयम् ॥ यमस्य भवनं गच्छेत्री रात्रिर्नात्र संशयः ॥ ऋसरस प्रति रामः तिंप्रतिष्ठितसमीर णां ।। उष्टणेो के विनिक्षिप्य विषायै विधिनातनः।। अर्कै इन लसंजा तांखङ्गखेट कधारिणी ॥। ३११ For Private And Personal

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