Book Title: Prapanchasara Sangraha
Author(s): Giryanendra Saraswati
Publisher: Giryanendra Saraswati
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
प्र-स.] विकेनबोधिपत्रगतेनसाज्यनचापतंजुहपात्॥तस्मादुक्तफलंस्यादिति।प्रयोगां हवनकर्मकरोतुफलैर्न वैस्य। ३४६ || तमामलकीतरुसंभवैः॥दुरितरोगविषग्रहविभमप्रशमनायचसर्वसम्मध्ये॥इतिआमलकम्॥पयोगांतरम्॥देखें।
रवि विंचस्थमनोहरांगंप्रसंनमुखकमलम्॥अमतपटसजलौकंकरयगलेनादयानममलमतिः॥ध्यावससंख्यग मुंजवात्मानंदशानिरीसतम्॥म्मत्वा षोडशसंख्यंजवातसांतिकसमारभ्य।स्वांगावापिसोपानरूप्यमयंप्रतिविधि समन्चममम्॥ द्वात्रिंशसंख्यमयोजत्वासंचिंत्यतेनमार्गेण॥अवतीर्याग्रेस्थित्वा निजरोगगणंतदाजलूकीकथास|| केलमपिचोपयिखानीरोगस्यान्मरोगमतजलैरमिषेचयंतमैनंध्यात्वाधन्वंतरिंजपेन्मन्त्राअष्टोतरसहलंस्थेय पिचयौवनस्यवश्याय।आरोग्यायसरध्येकात्य दीर्घायुषेविस क्यचतिवसुसंख्यमष्टसंख्मोअन्यत्सर्वस्पटा। प्रयोगांतरम्।
मिश्रेणानेनसंजताभोज्यजानंदिने दिने।भुक्तयोसौनरोगैर्विमुक्तःसखभाग्भवेत्॥प्रयोगा । औष धादिकम नेनजापितं नित्यमेवजपतांतथाटणाम्॥आमयग्रहविषस्पतिश्रमाद्यापदोंनतुभवंतिजातचित् इति। अथथंयंत्रं वक्ष्ये।ससघ्याख्यंमध्येवणवमपिषष्टोनविवरेसुधार्गकिंचल्कंस्वरयुगलमष्टछमनम्॥लिखेन्मन्त्र रामः स्मार्गानपिशरमितान्यंजनरतम्।कगेहोत् पटांत भिषगपिपर्यत्रमुदितम्।।एतहिलिख्यपत्रहैमे पीठेसुवणले १४९
For Private And Personal

Page Navigation
1 ... 692 693 694 695 696 697 698 699 700 701 702 703 704 705 706 707 708 709 710 711 712 713 714 715 716 717 718 719 720 721 722 723 724 725 726 727 728 729 730 731 732 733 734 735 736 737 738 739 740 741 742 743 744 745 746 747 748 749 750 751 752 753 754 755