Book Title: Prapanchasara Sangraha
Author(s): Giryanendra Saraswati
Publisher: Giryanendra Saraswati

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Page 725
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir पिन्यै विमलाये. इनिचतुर्गरतिः तमोपहारिण्यै सूरमायै विश्व योन्यै जयाच हायै पद्मायायै पपीचे शोभागी भद्ररूपायै इतिपंचमारति अरुणायनमइत्यंता भिरिभिःपटी आदित्यादिनवन है:सहसप्तमी।इंद्रदिशा रष्टमी व न्यादि भिनवमीमार वंगुक्तपीठे पंचगव्यसिीरहमादिच कथितमले:दीक्षाकलशंसं पूर्व स्वमुक्तप्रकारे। गमंपूज्यममाभिषिच्चचतुर्विशतिलसंजपिसापायसतिलएतदूर्वाधारद्रुमसमिद्भिरेकैकं त्रिसहसंसख्यं हुनेत्॥५॥ रश्चरणा होमः ॥ अथप्रयोगः॥असरसहस्त्रसंरत्यंमुख्यतः कैवलैतिले हयात्॥दुरितच्छेदन विधयेमन्त्री दी। युषेचविशद मतिः॥प्रयोगांतरं।आयुःकामोजुहुयात्सायस हविराज्यकेवलाज्यै च दूर्वाभि:सतिलाभिस्सलि सहमसंख्यकमन्त्री भयमर्थः॥पायसे नचाज्यसिक्तेनहविषाचकेवलाज्यैश्च दूर्वा भिश्नतिलैश्वस्यकटयक विसहसंसंख्यंहनेत्॥पयोगा ॥अथविमभरसितैररुणैर्जुहयान्सरोरुहरयतम्॥नष्ट श्रीरपिभूयोभवतिम नोशंसमंदिरंलक्ष्म्याः ॥प्रयोगा-अनायर्यनैपिपालाशेर्बह्मवर्चसेजुहुयोत्सर्वैरयुतंजुहुयात्।सर्वफलाझै || दिजेश्वरोमतिमान्॥अथगायत्रीमत्रप्रसंगात तुरीय्याष्टाक्षरमन्त्री पिगायत्र्याश्चतुर्यपारफलातरोक्तयोग्यतावशा लिरयते॥ब्रह्माऋषिःविमलरुषिर्वागायबीईदःपरमहंसोदेवतार्फबीजंपरशक्तिःचंकीलकम्॥मोसाथै विनि For Private And Personal

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