Book Title: Prapanchasara Sangraha
Author(s): Giryanendra Saraswati
Publisher: Giryanendra Saraswati
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
जयायै विजयायै भंद्रायै भदकाल्यै सुमरव्यै दुर्मस्यै न्यापमुख्यै सिंहमुरौ दर्गायै अस्मिन्पीठेकलशंसंपूर्यजा तवे दोम्निमूर्तिसमावाहासमर्चयेत्।अंगैःप्रथमार तिम्निःसतारिदनमः सिववेनानमःख विणिर्गादनमःनि दुर्षपनःसनमःादःवेतिहादनिनमः।तोयतिराममनमः।सोमवानसुनमः।सेदवेतजानमारतेःप्रतिलोमग तैवर्णैद्वितीया।रति जातवेदसेसप्तजिकाय हव्यवाहनायनमःचादरजाय वैचानण्य. कौमारतेजसे न म:विश्वमुखाय देवमुखाय इतिटतीयारतिः॥रवे नमःअयःअनिलाय आकाशायेतिमहारिवर्चयेत्॥ निर से प्रतिष्ठायै विद्यायै शात्य इतिकोणपर्चयेत्॥जगताये तपन्य वेदगा ये दहनरूपिण्यै सें देखें डायै जहं नभचारि म्ये वागीश्च मदवहाय सोमरूपायै मनोजवायेर त्यैकादशशक्ती:पूर्वदिशिम
येत् देगाये गये तीवकोपायै यशोवत्यै तौयात्मकायै नित्यै दयावत्यै हारिण्यै तिरस्क्रियाये वेदमावे। दमनप्रियायै रतिदसिणहिस्पयेत्॥समाराध्यै नंदिन्यै परायै रिपुमर्दिन्यै षष्ठये दंडिन्य तिग्मायै दुर्ग ये गायत्री निरवद्यायै विशालाक्ष्य इति पश्चिमदिशिश्वासोहाहायै नादिन्यै वेदनायै वन्दिगर्भायै मि हवाहायैः-धुर्यायै दुर्विमहायै रिरंसाय तापहारिण्ये त्यक्तदोषायै निःसपलाय इसतरदिस्य येन
---
-
:
For Private And Personal

Page Navigation
1 ... 727 728 729 730 731 732 733 734 735 736 737 738 739 740 741 742 743 744 745 746 747 748 749 750 751 752 753 754 755