Book Title: Prapanchasara Sangraha
Author(s): Giryanendra Saraswati
Publisher: Giryanendra Saraswati

View full book text
Previous | Next

Page 715
________________ Soy Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri G ग्रहपीडानश्पनि।पयोगांतरम्॥वन्हे विवेवन्हिवत्यज्वलंतंन्यस्त्वाबीजमस्तकेग्रस्तनंतोः।। ध्यावावेशंकारये ५ जीवंतज्जतंवासम्यगाघाणनेन।अयमर्थः भूतग्रस्तस्यपुरुषस्यमस्तकेत्रिकोणं लिखित्वातदंत:भग्निवस ज्वलंतंमन्त्र बीजंलिखित्वाताहशंध्यायेत्॥एतंरुतेआविस्पसकल मुकागछं निभूतमंचाः।। अथवारतदीज मन्त्रजप्तंबंधजीवमाघाययेत्तेनाय्यावेशोभवनि।पयोगाला शुक्लादिः शुक्लभाः पौष्टिकशमनावमा कारन सय रकोरक्तादिक्षोभसंस्त भनविषिष हकारादिकोहेमवर्णः॥धूम्रोगामर्दनोचाटनधिषुसमीरारि कोलोनादियो। पीताभस्तंभनादौमनरतिविमलोमुक्तिभाजामखादि कलाभपाणगेहस्थितमथनग्नध्यातमाध्यविधतेवा। विर्यकर्णरंधैर्दितमपिवदनेक्षिमंगुलमाशुमर्म स्थानेसमीरंसपदिशिरमिवादःसहंशीर्षरोगम॥ वाग्गोपी उनालेवनिरतिरत्तमथतन्मंजलेबीजमेतत्॥पार्थ पविषिचस्वरारतमिदं ने वेस्मतंतह जम्। योनौवामद शालवःस्ततिमथोकुसौचशुलंजपेत्॥ विस्फोटेसविषेज्वरेटपितथारक्तामयेविहादेशीर्षगटेस्मोहि पिमिमंसंसप्तयेमन्त्रविद॥ शुक्लादिशुक्लभाइ त्यागथानामयर्थः । शुक्लःसकार:मन्त्रवर्ग गमयमरेफंसकर तस्यस्थानेस कारःसूक्ष्म्यौदत्यवंसंयोज्यात्रिंतामणिमन्त्रशुक्लस्वरूपेणध्यायेन्मसकेपौरिकमलेशमन For Private And Personal

Loading...

Page Navigation
1 ... 713 714 715 716 717 718 719 720 721 722 723 724 725 726 727 728 729 730 731 732 733 734 735 736 737 738 739 740 741 742 743 744 745 746 747 748 749 750 751 752 753 754 755