Book Title: Prapanchasara Sangraha
Author(s): Giryanendra Saraswati
Publisher: Giryanendra Saraswati

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Page 716
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir प्र.सं. लेचर इत्येवंरकपदवाच्यरेफादिसंयोज्य चिंतामणिमन्चरक वर्ण ध्यायेास्तके आकर्षण व श्यादिषु ॥ दक्ष्य ३५७ इत्ये वह कारपूर्वक हेमवर्णी ध्यायेन्मस्तके ॥ सं सोभ संस्तंभनादिषु ॥ य क्ष्यों इत्ये वं वायु पुरःसरं धूम्रव ध्यायेन्मस्तेक अंगमा टनकर्मणि ।। लक्ष्यों इत्ये वैष्टथिवीपुरःसरं पीता भंगस्त के ध्याये क्तं भनकर्मणि । व् स्म्यै इत्येवं वरुणपुरः स्मर मंबंध व लंगस्त के ध्यायेन्मो सार्थ । रक्ष्म इत्येवंम मनलपुरः सरंप को णस्पंक साभ नयने ध्यायेद नयनयोरोध्यं भवति ॥ सत दीजं कर्णरं घेध्यायेत वा धैर्य भवति ॥ एवमे वदने ध्यातमर्दितं भव अति॥ अर्दितंमुख रोग विशेषः ॥ एत्र मे वकुक्षौ ध्यातं शूलंश् मयेत् ॥ एवंमर्मणिध्यातं वायुनाशयेत् ॥ एवमव शिर सिध्या तंशीर्षरोगं राम यति ॥ एवमेव स्त्री योनाव स्टक् तिरंत खावं शमयति ॥ एवमेवकर्ण नाले चतुरखे भू बीजर तं ध्यातं वाग्रोधं करोति । नेत्रे ठकारमध्ये खरावतमिदंवीजं ध्यातंनय नरोगंशमयति ॥ कुक्षौ ध्यातं चेत शूलंशमयेत् । एवमेवविस्फोटेस विषेज्वरे त्यषितथारकमयेविभ्रमे ।। दा हे शीर्षगदेस्मरे नान शमयेत् ।। प्रयोगां उत्तरम्॥ निजनामगर्भमथवीजमिदं विचित्ययोनिविवर सुदृशः। वश्यैत्क्षणाच्छितत पामनसः लव यच रामः क्रम थवा रुधिरम् ॥ निजशिवशिरसि श्रितमेतदीजंसर वाप्रवेशये द्योनोमस्या स्त संपर्कात्तां चत्रवाणेन ३५ For Private And Personal

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