Book Title: Prakrit Vidya 2003 01
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 21
________________ जैन-स्तूपों के सम्बन्ध में प्रचुर साहित्यिक तथा अभिलेखीय प्रमाण उपलब्ध हैं। उनसे ज्ञात होता है कि अनेक प्राचीन-स्थलों पर उनका निर्माण हुआ। मथुरा, कौशाम्बी आदि कई स्थानों में प्राचीन जैन-स्तूपों के भी अवशेष मिले हैं। उनसे यह बात स्पष्ट है कि इन स्तूपों का निर्माण ईसवी पूर्व दूसरी शती से व्यवस्थितरूप में होने लगा था। प्रारम्भिक-स्तूप अर्धवृत्ताकार होते थे। उनके चारों ओर पत्थर का बाड़ा बनाया जाता था। उसे वेदिका' कहते थे। वेदिका के स्तम्भों पर आकर्षण मुद्राओं में स्त्रियों की मूर्तियों को विशेषरूप से अंकित करना प्रशस्त माना जाता था। गुप्त-काल से जैन-स्तूपों का आकार लम्बोतरा होता गया। बौद्ध-स्तूपों की तरह जैन-स्तूप भी परवर्तीकाल में अधिक ऊँचे आकार के बनाये जाने लगे। मध्यकाल में जैन-मन्दिरों का निर्माण व्यापकरूप में होने लगा। भारत के सभी भागों में विविध प्रतिमाओं से अलंकृत जैन-मन्दिरों का निर्माण हुआ। इस कार्य में विभिन्न राजवंशों के अतिरिक्त व्यापारी-वर्ग तथा जनसाधारण ने भी प्रभूत-योग दिया। चन्देलों के समय में खजुराहो में निर्मित जैन-मन्दिर प्रसिद्ध हैं। इन मन्दिरों के बहिर्भाग एक विशिष्ट शैली में उकेरे गये हैं। मन्दिरों के बाहरी भागों पर समान्तर अलंकरण-पट्टिकाएँ उत्खचित हैं। उनमें देवी-देवताओं तथा मानव और प्रकृति-जगत् को अत्यन्त-सजीवता के साथ आलेखित किया गया है। खजुराहो के जैन-मन्दिरों में पार्श्वनाथ का मन्दिर अत्यधिक विशाल है। उसकी ऊँचाई 68 फुट है। मन्दिर के भीतर का भाग महामण्डप, अन्तराल तथा गर्भगृह-इन तीन मुख्य भागों में विभक्त है। उनके चारों ओर प्रदक्षिणा-मार्ग है। इस मन्दिर के प्रवेशद्वार पर गरुड पर दसभुजी जैन-देवी आरूढ़ हैं। गर्भगृह की द्वारशाखा पर पद्मासन तथा खड्गासन में तीर्थंकरों की प्रतिमाएँ उकेरी गयी हैं। खजुराहो के इन मन्दिरों में विविध आकर्षक-मुद्राओं में सुर-सुन्दरियों या अप्सराओं की भी मूर्तियां उत्कीर्ण हैं । इन मूर्तियों में देवांगनाओं के अंग-प्रत्यंगों के चारु-विन्यास तथा उनकी भावभंगिमाएं विशेषरूप से दर्शनीय हैं। खजुराहो का दूसरा मुख्य जैन-मन्दिर आदिनाथ का है। इसका स्थापत्य पार्श्वनाथ-मन्दिर के समान है। विदिशा जिले के ग्यारसपुर' नामक स्थान में 'मालादेवी मन्दिर' है। उसके बहिर्भाग की सज्जा तथा गर्भगृह की विशाल प्रतिमाएँ कलात्मक-अभिरुचि की द्योतक हैं। मध्य भारत में मध्यकाल में ग्वालियर, देवगढ़, चन्देरी, अजयगढ़, अहार आदि स्थानों में स्थापत्य तथा मूर्तिकला का प्रचुर-विकास हुआ। राजस्थान में ओसिया, राणकपुर, सादरी, आबू पर्वत आदि अनेक स्थानों में जैन स्थापत्य के अनेक उत्तम उदाहरण विद्यमान हैं। उनमें भव्यता के साथ कलात्मक अभिरुचि का सामंजस्य है। आबू पर्वत के जैन-स्मारकों मे संगमर्मर का अत्यन्त बारीक प्राकृतविद्या जनवरी-जून '2003 (संयुक्तांक) 00 19

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