Book Title: Prakrit Vidya 2003 01
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 36
________________ हे. है पूज्य गुरु शत-शत प्रणाम ( आचार्य 108 श्री विद्यानन्दजी के पावन चरणों में ) भूमंडल के प्रखर सूर्य, देदीप्यमान, ओ ज्योतिर्मान, पूज्य गुरु! शत-शत प्रणाम । पूज्य गुरु ! शत-शत प्रणाम ।। - अरुण कुमार जैन इंजीनियर कर्नाटक का 'शेडवाल' ग्राम, माँ 'सरस्वती' प्रांगण महान्, अप्रैल बाईस सन् पच्चीस में, बालक 'सुरेंद्र' जन्मे महान् ।। हे पूज्य गुरु... । । आह्लादित हो पिताश्री, कालप्पा आणप्पा उपाध्ये जी, अरु बंधु - सखा हर्षित होते, लख रूप आप देदीप्यमान । हे पूज्य गुरु ..... ।। 2 ।। जल न-क्रीड़ा सरिता में प्रहरों, नभ - शिखर हरीतिमा प्रांगण में, मानो तब ही से कहते हों, पावन होगा कण-कण भू का, पाकर चरणों से अमृतपान । हे पूज्य गुरु ...... ।। 3 ।। देखी यह लीला भी जग ने, अभयदाता कर से अस्त्रों को, करें संज्जित आयुधशाला में, विचित्र विरोधाभास महान् । हे पूज्य गुरु..... ।। 4 ।। गांधी, पुकार सुन छोड़ इसे ले लिया 'तिरंगा' हाथों में, ब्रह्मचर्य व्रत लिया आजीवन, बन गये पथिक नव-पथ के तब, था ऋषभदेव का पथ महान् । । हे पूज्य गुरु......।।5।। गुरु पूज्य महावीरकीर्ति से, बने पार्श्वकीर्ति क्षुल्लक जी तब, मोह, ममता, बंधन तोड़ दिया, राग-द्वेष से भी मुख मोड़ लिया । पग से नापी भारत - -भूमि, दिया कोटि-जनों को अमृतदान ।। हे पूज्य गुरु... ।। 6 ।। 34 लाल किले का वह प्रांगण, धर्म- राष्ट्रभक्ति से परिपूरित, गुरु पूज्य श्री देशभूषण से, सन् तिरसठ माह जुलाई को, बने मुनि श्री विद्यानंद महान् । । हे पूज्य गुरु.... ।। 7।। प्राकृतविद्या + जनवरी-जून 2003 (संयुक्तांक )

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