Book Title: Prakrit Vidya 2003 01
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 74
________________ • बंकापुरदोळजितसेनभट्टारकर श्रीपाद सन्निधियोळाराधना विधियं मूरु देवसां नोन्तु समाधियं साधिसिदं । बंकापुर में अजितसेनाचार्य जी के चरणकमलों में सल्लेखना-व्रत धारण करके तीन दिन तक उपवास रहकर समाधिमरण प्राप्त किया।" यह संदर्भ उस समय में अजितसेनाचार्यजी के प्रति राजा-महाराजाओं की पूज्य-भावना का प्रतीक है। प्रसिद्ध और प्रामाणिक चन्दोम्बुधि' के कर्त प्रथम नागवर्म (ई.स. 990) भी अजितसेनाचार्यजी के शिष्य थे। आपने अपनी उपर्युक्त रचना के मंगलाचरण में अपने गुरु अजितसेनाचार्यजी का स्मरण किया है। इसीप्रकार और एक शिष्य मुळगुंद के मल्लिसेण ने भी (ई.स. 1050) अपनी कृतियों में अजितसेनाचार्यजी का स्मरण किया है। लगभग ई. सन् पाँचवी सदी में जब पूज्यपादजी विदेहक्षेत्र के श्रीमंधरस्वामी के दर्शन करके बंकापुर आये थे, तब धूप के कारण से आपकी आँखों की रोशनी कम हो गयी थी। उस समय आपने बंकापुर के शांतिनाथ तीर्थंकर के दर्शन करके इस तीर्थंकर के नाम पर ही 'शान्त्यष्टक' की रचना करके खोई हुई आँखों को वापस पाया, यह संदर्भ देवचन्द्र के 'राजावळि कथासार' में प्रस्तुत हुआ है।" ___इसप्रकार जैनधर्म का पुण्य क्षेत्र, तीर्थक्षेत्र, जैनाचार्यों की तपोभूमि, जैन विद्वानों का निवास, प्रसिद्ध राजाओं की उपराजधानी आदि से गौरव प्राप्त बंकापुर में “यस्मिन् जिनेन्द्र पूजा प्रवर्ततेऽत्र तत्र देश परिवृद्धिः । __नगराणां निर्भयता तद्देश स्वामिनांचेर्जा नमो नमः ।।" जिस देश में जिनेन्द्र की पूजा होती है, उस देश की वृद्धि होती है, नगर निर्भय रहते हैं, राजा ऊर्जित बन जायेंगे" ऐसी प्रेरणा से कई जिनालय निर्मित हुए। शिलालेखों के आधार पर जिनालयों का वर्णन विशिष्ट है। गदन जिला के उडचब्व मंदिर के पीछे स्थित राष्ट्रकूट नित्यवर्ष चैथे गोविंद द्वारा रचित ई.स. 925 के शिलालेख में बंकापुर में धोरजिनालय के आचार्य भट्टारक जी पसुंडि (असुंडि) का शासन करते समय नागपुलि के गावूड नागय्या ने अपने द्वारा निर्मित मंदिर को भूदान किये हुए संदर्भ का विवरण प्राप्त होता है। एपिग्राफिया कर्नाटिका' (द्वितीय) के आमुख में कहा गया है कि असुंडि के शिलालेख में वर्णित बंकापुर का धोर जिनालय हुळळ से बंकापुर में जीर्णोद्वार किये गए जिनमन्दिरों में एक होगा। इसके अलावा डॉ. एस्. शेट्टर जी ने कहा है कि बंकापुर में जिन दो जिनालयों का जीर्णोद्धार करवाया गया है, उनमें एक 'धोर जिनालय' होना संभव है। इससे सिद्ध होता है कि बंकापुर में 'धोर' नाम का एक जिनालय था। समझा जाता है कि यह जिनालय राष्ट्रकूट के महासामंत चल्लकेत परिवार के एक प्रतिष्ठित राजा द्वारा निर्मित किया गया था। इस परिवार में 'धोर' नाम के तीन राजा मिलते हैं। उनमें इस परिवार का मूलपुरुष प्रथम धोर (बंकेय के पिता) बंकेय का 00 72 . प्राकृतविद्या+जनवरी-जून '2003 (संयुक्तांक)

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