Book Title: Prakrit Vidya 2003 01
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 79
________________ आण्णासाहब लढे जी काजैन-स्त्री-विषयक चिंतन और कार्य -डॉ. पद्मजा आ. पाटील आज के महाराष्ट्र का सामाजिक और शैक्षणिक जीवन तथा 19वी सदी का अंत और 20वी सदी के प्रारंभ में शुरू किए गए सामाजिक और राजकीय आंदोलन तथा स्त्री-विषयक संघर्ष का अटूट-संबंध है। हमें इस आंदोलन की खोजकर आज के स्त्री-जीवन के सामर्थ्यस्थान और खामियाँ जाँचकर देखनी चाहिए। बंगाल के ब्राह्मसमाज से प्रभावित होकर मुंबई में प्रार्थना समाज' स्थापित हुआ। हिंदू-समाजांतर्गत बहुजन-समाज के दु:खों को मुखरित करने के लिए महात्मा जोतिराव फुले जी ने 1873 ई. में 'सत्यशोधक समाज' की स्थापना की। जोतीराव जी के क्रांतिकारी विचारों का प्रचार और प्रसार दक्षिण-महाराष्ट्र में बड़े जोरशोर से हुआ। काँग्रेस-नेतृत्व के राष्ट्रीय सभा के राजकीय आंदोलन के साथ-साथ सामाजिक और धार्मिक आंदोलन में कुछ हद तक जातिवादी विचार-सरणि जड़ पकड़ने लगी। भारत के राजकीय प्रवाह में मुस्लिमों की मुस्लिम लीग' 1906 ई. में मुस्लिम सामाजिक आंदोलन के रूप में उभर आयी, तो कोल्हापुर के छत्रपति शाहूजी महाराज ने 'सत्यशोधक-समाज' के तत्त्वज्ञान को पुनरुज्जीवित कर मुंबई-इलाके में 1916 ई. में ब्राह्मणेतर-आंदोलन छेड़ा। ये दोनों आंदोलन 'स्वराज्य आंदोलन' से समानांतर कार्यरत रहे। अनायास अंग्रेज-राज्यकर्ताओं का बल इस आंदोलन के पीछे रहा। इसीके बलबूते पर लोकमान्य तिलक जी के नेतृत्व के 'स्वराज्य आंदोलन' को वे सहजता से शह दे सके। ___1930 ई. के बाद महात्मा गांधी के राष्ट्रीय आंदालेन में ब्राह्मणेतर-आंदोलन मिट गया। फिर भी उससे जो नेतृत्व उभरा, उसके द्वारा ही आज के महाराष्ट्र का वैचारिक गठन हुआ है। 1920 ई. के पश्चात् ब्राह्मणेतर आंदालेन के तीन आविष्कार हमें दिखाई देते हैं। 1919 ई. की 'काले' (राड) के सत्यशोधक परिषद् में रैयत शिक्षण संस्था' की स्थापना कर कर्मवीर भाऊराव पाटील जी इस शैक्षणिक-प्रवाह के प्रतिनिधि बने। दूसरा प्रवाह राजकार्य की ओर मुड़ा। इसमें भास्करराव जाधव जी, शिक्षण मंत्री मुंबई इलाका (1923 प्राकृतविद्या-जनवरी-जून '2003 (संयुक्तांक) 0077

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