Book Title: Prakrit Vidya 2003 01
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 80
________________ से 26), आ.बा. लठेजी, अर्थमंत्री मुंबई इलाका (1937 से 1939) थे। तो तीसरा प्रवाह केशवराव जेधे जी के नेतृत्व में पारस्परिक सहयोग से ग्रामीण किसानों का आर्थिक शोषण रुकवाकर उनके विकास में लगा। स्वातंत्र्योत्तर काल में ग्रामीण महाराष्ट्र में 'शेतकरी कामगार पक्ष' पला और बढ़ा भी। 1942 का 'भारत छोड़ो' आंदोलन धीमा पड़ने पर निर्मित नेतृत्व महाराष्ट्र के राजकार्य में सक्रिय हुआ। इन्हीं आंदोलनों के उदय में ही कारण खोजने पड़ते हैं। 1960 के बाद ग्रामीण महाराष्ट्र में सामाजिक स्त्री-विषयक राजकीय और सहकारी आंदोलनों में इन सारे प्रवाहों का प्रभाव दिखाई देता है। 1911 को छत्रपति शाहू जी के नेतृत्व में कोल्हापुर-संस्थान में पुनरुज्जीवित 'सत्यशोधक आंदोलन' 1917 के 'माँटेग्यू घोषणा' की पार्श्वभूमि पर बहुजन-समाज के राजकीय अधिकारों के लिए संघर्ष करने लगा। इसका रूपांतर 'ब्राह्मणेतर आंदोलन' में हुआ। आंदोलन के इस माध्यम से ब्राह्मण-विरोधी एक नया सांस्कृतिक फसाद खड़ा हुआ। छत्रपति शाहू महाराजा के दृष्टिकोण में शुरू में यह विद्रोह वेदोक्त' प्रकरण की तहत वैयक्तिक-स्तर पर था। किंतु एक दशक में ही इस संघर्ष ने सामाजिक और राजकीय रूप धारण किया। राजोपाध्ये नामक ब्राह्मण पुरोहित ने स्नान के लिए छत्रपति शाहू जी को वेदोक्त-मंत्र नकारना यह तत्कालीन स्थितियों में छत्रपति को एक चुनौती ही थी। 1899 के आन्दोलनों में यह घटना घटी। परंतु छत्रपति शाहूजी ने ब्राह्मणेतर-नेतृत्व की खोज-प्रक्रिया शुरू की। ब्राह्मणों का शैक्षणिक और धार्मिक वर्चस्व हटाने के लिए ग्रामीण अशिक्षित और पददलित-समाज को शैक्षणिक सुविधाएँ उपलब्ध कराना आवश्यक था। अलग-अलग जाति-धर्मों के शिक्षित-युवकों को कोल्हापुर में बुलाकर उन्हें उनके समाज के सामाजिक और शैक्षणिक-प्रगति के लिए सर्वांगीण-सहायता करना तथा उनके नेतृत्व का अपने सामाजिक और शैक्षणिक-आंदोलन में उपयोग करना छत्रपति शाहू जी का प्रमुख उद्देश्य था। 1902 में राज्य-व्यवस्था में ब्राह्मणेतरों के लिए 50% आरक्षितपद अमल में लाए गए। बहुजन-समाज को शैक्षणिक-द्वार रहें- इस उद्देश्य से कोल्हापुर में जाति-आधारित-बोर्डिंगों की कल्पना पली और बढ़ायी गयी। 1901 से 1922 के मध्य अलग-अलग जाति-धर्मों के विद्यार्थियों के लिए 21 बोर्डिंगों को बनाया गया। बहुजन समाज के शिक्षित-नेतृत्व को तैयार करने की प्रक्रिया यही पर पनपी। किसी विशिष्ट समाज का शैक्षणिक-वर्चस्व हटाने के लिए, पददलित-समाज बगैर विद्या के जागृत नहीं होगा —यह छत्रपति शाहू जी को वेदोक्त प्रकरणोपरांत' ज्ञात हो गया था। इसलिए श्री भास्करराव जाधव (मराठा), श्री आण्णासाहब लठे (जैन) और श्री महावदेव कृष्णा डोंगरे (सी.के.पी.) इन तीनों आंग्लशिक्षित-कार्यकताओं को तैयार किया गया। 1930 तक श्री आण्णासाहब लठे ने इस सामाजिक और राजकीय पार्श्वभूमि पर स्त्री- विषयक चिंतन और कार्य की खोज लेना प्रस्तुत शोध-निबंध का मर्यादित उद्देश्य 00 78 प्राकृतविद्या-जनवरी-जून '2003 (संयुक्तांक)

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