Book Title: Prakrit Vidya 2003 01
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 84
________________ सारी महिलाएँ गरीब गायों की तरह स्वच्छतागृह के पीछे छिपकर बैठी हैं। महिलाएँ शिक्षा प्राप्त करें, आश्रम में आयें – इसलिए अपनी पत्नी ज्ञानमती को आण्णासाहब जी ने अपने घर पर खुद पढ़ाया। गर्मी-सर्दी में पल्ले के नीचे स्लेट ढककर 1-17 मील तक चलकर तब पाठशाला आया करती थी। स्त्री-शिक्षा के लिए दक्षिण भारत जैन सभांतर्गत स्वतंत्र-शिक्षा-विभाग स्थापित कर व्यवस्था स्वयं स्वीकार की। प्रोत्साहन के तौर पर महिलाओं के लिए छात्रवृत्तियाँ घोषित की। महिलाओं के हस्तकला का प्रदर्शन आयोजित किया। प्रदर्शन देखकर गवर्नर साहब की पत्नी. मिसेस मॅनेझीनुर बोली, "ज्ञानमती जी लट्टे ने इस प्रदर्शन का आयोजन कर हमें आश्चर्यचकित किया है। मैं उनकी सराहना करती हूँ।" 1911 से 1914 ई. तक आण्णासाहब जी कोल्हापुर संस्थान के शिक्षा मंत्री पद पर बने रहे। स्त्री-शिक्षा के कार्य में उन्हें रखमाबाई केळवकर जी (डॉ. कृष्णाबाई केळवकर जी की माताजी) सहायता करती। 1911 ई. में कोल्हापुर संस्थान में 1788 लड़कियाँ शिक्षा प्राप्त कर रही थी, 1914 ई. में यह संख्या 2271 तक पहुँची। लड़कियों को लाने-ले जाने के लिए एक चर्मकार-महिला नियुक्त की गयी। दलित-महिलाओं को नौकरी देने का अभिनव-प्रयोग छत्रपति शाहू जी के नेतृत्व में शिक्षा-क्षेत्र में कोल्हापुर में ही हुआ। आण्णासाहब जी के इस कार्य की प्रशंसा करते हुए कर्नल वूडहाऊस जी एक सार्वजनिक समारोह में बोले। इसके प्रत्युत्तर में आण्णासाहब जी ने कहा "इतनी कोशिशों के बावजूद भी स्त्री-शिक्षा का प्रसार जितने जोरों से होना चाहिए, नहीं हो रहा है। इसकी कारणं-मीमांसा करते हुए वे बोले कि इस समाज में बालविवाह की रूढ़ि ही स्त्री-शिक्षा में अड़चनें पैदा कर रही है। ऐसे में अध्यापिकाओं की हैसियत भी संतोषजनक नहीं है। हाल ही में छ: महिला अध्यापिकाओं को प्रशिक्षण के लिए महाविद्यालय में भेजा गया है। एक मैट्रिक अध्यापिका के लिए महाविद्यालय में भेजा गया है। एक मैट्रिक अध्यापिका को छात्रवृत्ति भी प्रदान की गयी है।" तत्कालीन स्त्री-शिक्षा की समस्याएँ आर्थिक और सामाजिक प्रश्नों के जाल में उलझकर भी अपनी मर्यादित कार्यकक्षा में रहकर आण्णासाहब जी की कोशिशें उल्लेखनीय हैं। इस कार्य से उन्हें स्वजाति से और अपनों से भी बहुत संकटों का सामना करना पड़ा। जैनों की उपजातियों में भी विवाह करवाने का उन्होंने प्रयत्न किया। (चतुर्थ-पंचम) इसप्रकार का विवाह उन्होंने अपने घर में ही पुलिस-सुरक्षा में जैन-बोर्डिंग में सम्पन्न किया। अपनी भतीजी श्रीमती की विवाह श्री वझोंबा चतुर्थपंथीय बोर्डिंगवासी युवक से कराकर छात्रों के सामने आदर्श-निर्माण करने का प्रयत्न किया। स्वाभाविकतया सनातनी-जैनों ने उनका बहिष्कार किया। 1913 में जब उनकी पहली पत्नी का स्वर्गवास हुआ, तो अंतयात्रा में श्री बळवंतराव धावते जी, उनके मित्र और एकमेव जैन व्यक्ति उपस्थित थे। आण्णासाहब जी की साली श्रीमती कलंत्रे, जो 0 82 प्राकृतविद्या-जनवरी-जून '2003 (संयुक्तांक)

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