Book Title: Prakrit Vidya 2003 01
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 48
________________ जैनधर्म के प्रतिष्ठापकों तथा महावीर स्वामी ने अहिंसा के कारण ही सबको प्रेरणा दी थी। जैनियों की ओर से कितनी ही संस्थाएँ खुली हुई हैं, उनकी विशेषता यह है कि सब ही बिना किसी भेदभाव के उनसे लाभ उठाते हैं, यह उनकी सार्वजनिक सेवाओं का ही फल है। जैनधर्म के आदर्श बहुत ऊँचे हैं। उनसे ही संसार का कल्याण हो सकता है। जैनधर्म तो करुणा-प्रधान धर्म है। इसलिये जैन चींटी तक की भी रक्षा करने में प्रयत्नशील है। दया के लिये हर प्रकार का कष्ट सहन करते हैं। उनमें मनुष्यों के प्रति असमानता के भाव नहीं हो सकते। मैं आशा करता हूँ कि देश और व्यापार में जैनियों का जो महत्त्वपूर्ण भाग है, वह सदा रहेगा। -श्री गोविन्दवल्लभ पंत . 0 जैन विचारों की छाप : भारतीय संस्कृति के संवर्द्धन से उन लोगों ने उल्लेखनीय भाग लिया है, जिनको जैनशास्त्रों से स्फूर्ति प्राप्त हुई थी। वास्तुकला, मूर्तिकला, वाङ्मय सब पर ही जैन-विचारों की गहरी छाप है। जैन विद्वानों और श्रावकों ने जिस प्राणपण से, अपने शास्त्रों की रक्षा की थी वह हमारे इतिहास की अमर कहानी है। हमें जैन-विचारधारा का परिचय करना ही चाहिये। -डॉ. सम्पूर्णानन्द जी. 0 जैन इतिहास की आवश्यकता : प्राचीन भारतीय इतिहास का जो पता आजकल चल रहा है, उसमें जैन-राजाओं, राजमन्त्रियों और सेनापतियों आदि के जबरदस्त कारनामे मिलते जा रहे हैं, अब ऐतिहासिक विद्वानों के लिये जैन-इतिहास की जरूरत पहिले से बहुत बढ़ गई है। -प्रो. सत्यकेतु विद्यालंकार .. • अहिंसा के मान् प्रचारक भगवान् महावीर : भगवान् महावीर ने पूरे 12 वर्ष के तप और त्याग के बाद अहिंसा का संदेश दिया। उस समय हिंसा का अधिक जोर था। हर घर में यज्ञ होता था। यदि उन्होंने अहिंसा का संदेश न दिया होता, तो आज भारत में अहिंसा का नाम नहीं लिया जाता। –बौद्धभिक्षु प्रो. धर्मानन्द जी . ० देश की रक्षा करने वाले जैनवीर : जैनधर्म में दयाप्रधान होते हुए भी यह लोग वीरता में दूसरी जातियों से पीछे नहीं रहे। राजस्थान में मन्त्री आदि अनेक ऊँची पदवियों पर सैकड़ों वर्षों तक अधिक जैनी ही रहे हैं, और उन्होंने अहिंसा धर्म को निभाते हुए वीरता के ऐसे अनेक कार्य किए हैं जिनसे इस देश की प्राचीन उदार कला की उत्तमता की रक्षा हुई। उन्होंने देश की आपत्ति के समय महान् सेवाएँ की और उसका गौरव बढ़ाया। –महामहोपाध्याय रायबहादुर पं. गौरीशंकर हीराचन्द ओझा . . राष्ट्रीय, सार्वभौमिक तथा लोकप्रिय जैनधर्म : जैनधर्म किसी खास जाति या 0046 प्राकृतविद्या-जनवरी-जून '2003 (संयुक्तांक)

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