Book Title: Prakrit Vidya 2003 01
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 63
________________ प्राकृतभाषा में लोरी - हिन्दी से प्राकृत रूपान्तरण : डॉ. वीरसागर जैन अरिहंतो तुह जणगो, जणणी सुहदा य तुज्झ जिणवाणी । हे मम बंधु ! जाणदु, अरिहंतो होदुं सुगमं त्ति । । 1 । । सिद्धो सुद्धो जणगो, जणणी सुहदा य तुज्झ जिणवाणी । हे मम बंधु ! जाणदु, सिद्धो पुण होदुं सुगमं त्ति ।। 2 ।। आरओ तुह जणगो, जणणी सुहदा य तुज्झ जिणवाणी । हे मम बंधु ! जाणदु, आयरिओ होदुं सुगमं त्ति । । 3 ।। उबझाओ तुह जणगो, जणणी सुहदा य तुज्झ जिणवाणी । हे मम बंधु ! जाणदु, उवझाओ होदुं सुगमं त्ति ।। 4 । । मुणिराओ तुह जणगो, जणणी सुहदा य तुज्झ जिणवाणी । हे मम बंधु ! जाणदु, मुणिराओ होदुं सुगमं त्ति ।। 5 ।। हिन्दी अर्थ (माँ अपने बालक को लोरी सुनाते हुए पालने में ही उत्तम संस्कार दे रही है कि हे मेरे प्यारे पुत्र !) अरिहंत देव तेरे पिता हैं और सुख देने वाली जिनवाणी तेरी माता है। तथा हे मेरे भाई ! यह जान लो, अरिहंत होना बहुत सरल है, तेरे आत्मा का स्वभाव है ।। 1 ।। -- शुद्ध सिद्ध परमात्मा तेरे पिता हैं और सुख देने वाली जिनवाणी तेरी माता है । है मेरे भाई ! यह जान लो, सिद्ध होना भी बहुत सरल है, आत्मा का स्वभाव ही है ।। 2 ।। आचार्य परमेष्ठी तेरे पिता हैं और सुख देने वाली जिनवाणी तेरी माता है। हे मेरे भाई ! यह जान लो, आचार्य होना भी बहुत सरल है, आत्मा का सहज-स्वभाव है ।। 3 ।। उपाध्याय परमेष्ठी तेरे पिता हैं और सुख देने वाली जिनवाणी तेरी माता है । हे मेरे भाई ! यह जान लो, उपाध्याय होना भी बहुत सरल है, आत्मा का सहज स्वभाव है ।। 4 ।। मुनिराज (साधु परमेष्ठी) तेरे पिता हैं और सुख देने वाली जिनवाणी तेरी माता है । हे मेरे भाई ! यह जान लो, मुनिराज होना भी बहुत सरल है, आत्मा का सहज-स्वभाव है ।। 5 ।। प्राकृतविद्या + जनवरी - जून 2003 (संयुक्तांक ) 61

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