Book Title: Prakrit Vidya 2003 01
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 47
________________ ग्रन्थों की स्वच्छ और सुन्दर भाषा है। साहित्य के साथ-साथ विशेषरूप से जैनधर्म ने आकर्षण किया है, जो मानव को अपनी ओर खींचता है। जैनधर्म-संबंधी कला के नमूने देखकर आश्चर्य होता है। जैनधर्म ने सिद्ध कर दिया है कि लोक और परलोक के सुख की प्राप्ति अहिंसाव्रत से हो सकती है। -श्री प्रकाश जी, मंत्री भारत सरकार . ० महान् तपस्वी भगवान् महावीर : भगवान् महावीर एक महान् तपस्वी थे। जिन्होंने सदा सत्य और अहिंसा का प्रचार किया। इनकी जयन्ती का उद्देश्य मैं यह समझता हूँ कि इनके आदर्श पर चलने और उसे मजबूत बनाने का यत्न किया जाये। -राजर्षि श्री पुरुषोत्तमदास जी टण्डन . 0 विश्व शांति के संस्थापक : मैं भगवान् महावीर को परम-आस्तिक मानता हूँ। श्री भगवान् महावीर ने केवल मानव-जाति के लिये ही नहीं, पर समस्त प्राणियों के विकास के लिये अहिंसा का प्रचार किया। उनके हृदय में प्राणीमात्र के कल्याण की भावना सदैव ज्वलंत थी। इसीलिये वह विश्वकल्याण का प्रशस्त-मार्ग स्वीकार कर . सके। मैं दृढ़ता के साथ कह सकता हूँ कि उनके अहिंसा-सिद्धान्त से ही विश्व कल्याण तथा शान्ति की स्थापना हो सकती है। -काका कालेलकर जी . ० महान् विजेता : महावीर स्वामी ने जन्म-मरण की परम्परा पर विजय प्राप्त की थी। उनकी शिक्षा विश्व-मानव के कल्याण के लिये थी। अगर आपकी शिक्षा संकीर्ण रहती, तो जैनधर्म अरब आदि देशों तक न पहुँच पाता। –आचार्य श्री नरेन्द्रदेव जी . • प्रेम के उत्पादक : लोग कहते हैं कि अहिंसा-देवी नि:शस्त्र है, मैं कहता हूँ यह गलत ख्याल है। अहिंसा देवी के हाथ में अत्यन्त शक्तिशाली शस्त्र है। अहिंसारूपी शस्त्र प्रेम के उत्पादक होते हैं, संहारक नहीं। –आचार्यश्री विनाबा भावे जी . 0 भगवान् महावीर का प्रभाव : रिश्वत, बेईमानी, अत्याचार अवश्यनष्ट हो जाएँ, यदि हम भगवान् महावीर की सुन्दर और प्रभावशाली शिक्षाओं का पालन करें। बजाय इसके कि हम दूसरों को बुरा कहें और उनमें दोष निकालें। अगर भगवान् महावीर के समान हम सब अपने दोषों और कमजोरियों को दूर कर लें, तो सारा संसार खुद-ब-खुद सुधर जाए। -श्री लालबहादुर शास्त्री . ० संसार के कल्याण का मार्ग जैनधर्म : जैनियों ने लोकसेवा की भावना से भारत में अपना एक अच्छा स्थान बना लिया है। उनके द्वारा देश में कला और उद्योग की काफी उन्नति हुई है। उनके धर्म और समाजसेवा के कार्य सार्वजनिक हित की भावना से होते रहे हैं और उनके कार्यों से जनता के सभी वर्गों ने लाभ उठाया है। जैनधर्म देश का बहुत प्राचीन धर्म है। इसके सिद्धान्त महान् हैं और उन सिद्धान्तों का मूल्य उद्धार, अहिंसा और सत्य है। गांधी जी ने अहिंसा और सत्य के जिन सिद्धान्तों को लेकर जीवनभर कार्य किया, वही सिद्धान्त जैनधर्म की प्रमुख-वस्तु है। प्राकृतविद्या-जनवरी-जून '2003 (संयुक्तांक) 1045

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