Book Title: Prakrit Vidya 2003 01
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 41
________________ शांतिनिकेतन वे दिन, वे लोग -हीरालाल जैन बीसवीं सदी के प्रारम्भ में 'शांतिनिकेतन' की स्थापना रवीन्द्र के पिता महर्षि देवेन्द्रनाथ ने 'ब्रह्मचारी-आश्रम' के रूप में की थी। इसको रवीन्द्रनाथ ने पाल-पोसकर ज्ञान व भाईचारे के विश्वनीड़' के रूप में विकसित किया। विश्वभारती कहने को भले ही आश्रम था, पर वह गुरुकुलों जैसी संकीर्णता एवं पोंगापंथी से मुक्त था। सन् 1935 में कोटा के राजकीय महाविद्यालय से इंटर की परीक्षा पास करने के बाद मैंने विश्वकवि रवीन्द्रनाथ टैगोर के 'शांतिनिकेतन' में 'अर्थशास्त्र में बी.ए. आनर्स में प्रवेश लेने का निर्णय लिया। तब मैंने इस बात की कल्पना भी नहीं की थी कि मुझे वहाँ रवीन्द्रनाथ टैगोर, कला-मनीषी नन्दलाल बोस और संत-विद्वान् आचार्य क्षितिमोहन सेन, दीनबंधु सी.एफ. एंड्रयूज, आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी, पं. बनारसीदास चतुर्वेदी जैसी दिग्गज हस्तियों का इतना निकट सान्निध्य प्राप्त होगा। कोटा में मैं कुर्ता-पाजामा पहनता था, किन्तु शांतिनिकेतन में गांवड़ेल (गँवार) न समझा जाऊँ – इसलिए जीवन में पहली बार पतलून व खुले गले का कोट सिलवाकर साथ ले गया था। परन्तु वहाँ कोट-पतलून के पहनावे को गधे के सिर पर सींग की तरह नदारद पाकर तथा कुर्ता-धोती या कुर्ते-पाजामे का चलन देखकर मेरे सुखद-आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा। विश्वभारती की स्थापना 'अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय' के रूप में हुई थी। वहाँ शोध, चित्रकला, संगीत आदि विधाओं में शिक्षा के अपने पाठ्यक्रम एवं उपलब्धियों की व्यवस्था थी; पर स्नातक-स्तर तक की कालेजी शिक्षा के लिए 'शांतिनिकेतन' को कलकत्ताविश्वविद्यालय ने मान्यता दे रखी थी। विश्वभारती आश्रम नगरीय कोलाहल से दूर प्रकृति की सुरम्य-गोद में स्थित था। वहाँ कक्षाएँ कमरों में नहीं, खुले मैदान या वृक्षों के नीचे लगा करती थीं। हर कक्षा के लिए स्थान नियत थे और छात्र-छात्राएँ अपने आसन लिये वहाँ पहुँच जाते थे। विश्वभारती में प्रात: एवं अपराह्न में कक्षाएँ लगती थीं और शाम को खेलकूद और भोजन के बाद सांस्कृतिक कार्यक्रम होते थे। वहाँ बुधवार को साप्ताहिक-अवकाश रहता प्राकृतविद्या-जनवरी-जून '2003 (संयुक्तांक) 00.39

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