Book Title: Prakrit Vidya 2003 01
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 33
________________ बिन्दु के रूप में अनुस्वार जोड़कर स्वास्तिक-चिह्न '' सिद्ध किया गया था। __स्वास्तिक-चिह्न सिद्ध होने का यह विचार वर्तमान-लेखक के हड़प्पा-लिपि के शोधपरिणामों से मेल खाता प्रतीत होता है। क्योंकि हड़प्पा-काल में स्वास्तिक-चिह्न न सिर्फ बहुतायत में प्रयुक्त पाया जाता है; बल्कि स्वास्तिक-चिह्न के दोनों रूप देखने को मिलते हैं और कभी-कभी तो दोनों रूप एक साथ भी। इसके अतिरिक्त हड़प्पा की लिपि में चिह्नों को द्विगुणित करके संयुक्त-चिह्न सृजन करने की बहुप्रचलित परिपाटी थी। साथ ही उस पद्धति में ऐसे संयुक्त-चिह्नों को संतुलन व समरूपता देने का सदा प्रयास रहता था। अत: स्वास्तिक-चिह्न के रूपाकार और हड़प्पा की लिपि के मूलगुणों की समरसता ने स्वामी बिरजानंद जी के शोध की गम्भीरता स्थापित की। वैदिक-मन्त्रों में प्रयुक्त 'ओम्' ध्वनि की प्राचीन मांगलिक-चिह्न स्वास्तिक का एक होना सभी दृष्टि से स्वीकार्य प्रतीत होता है। बीच-बीच में मस्तिष्क में प्रश्न उठता था कि 'ओम्' का निहितार्थ क्या रहा होगा; जिससे स्वास्तिक-चिह्न के रूप में उसका प्रचलन सारे प्राचीन विश्व में हुआ। यह 'ओम्' ध्वनि भारतीय आध्यात्मिक चिन्तन की तो पहचान ही बन गयी। ___ इस प्रश्न का सरल उत्तर तो पारम्परिक वैदिक मान्यताओं में खोजा जा सकता है, जहाँ इस ध्वनि का ध्वन्यात्मक विश्लेषण करके उसमें साढ़े तीन ध्वनियों- 'अ', 'उ', 'म्' एवं अनुस्वार के रूप में सृष्टि की संकल्पना के आध्यात्मिक तत्त्वों की प्रतीकात्मकता निरूपिता की गई है। मगर यह तो बाद के इतिहास-काल में इस मांगलिक ध्वनि के माहात्म्य को बढ़ानेवाला प्रयास भी हो सकता था। अत: ब्राह्मी के 'ओ' स्वर के माध्यम से स्वास्तिक-चिह्न का 'ओम्' पढ़ा जाना शोध-विचार का प्रश्न बना रहा। इस दिशा में शोधकार्य से न सिर्फ ब्राह्मी-लिपि व हड़प्पा की लिपि के अंतर्संबंधों को समर्थन मिला बल्कि ब्राह्मी के "Z" ध्वनि-चिह्न के प्राचीन फिनीशिया (वर्तमान लेबनान देश) की लिपि के सातवें अक्षर जेजिन "Z" जो सामान्यत: 'ज' ध्वनि के लिए प्रयुक्त होता है, उससे भी समानता स्थापित हुई। इसीप्रकार थोड़े अन्तर के साथ इसी वर्णमाला का दसवां अक्षर योथ २' भी न सिर्फ आकार में समानता रखता है; बल्कि 'य' ध्वनि के लिये प्रयुक्त होता है। मगर इस वर्णमाला में जेजिन व योथ के समान सर्पिल-आकार ग्रहण करनेवाला इक्कीसवां अक्षर 'शिन' अर्थात् 'स' भी है। इनके अतिरिक्त इसी वर्णमाला में उल्टा सर्पिल आकार लिए हुए चौदहवां अक्षर 'ए' नून अर्थात् 'न' भी है। फिनीशिया की लिपि में मात्र 22 ध्वनि-चिह्न (व्यंजन) होते हैं। इस ध्वन्यात्मक-लिपि को ग्रीक, रोमन एवं बाद की विकसित हुई अरबी-लिपियों की जन्मदात्री समझा जाता है। इस लिपि से समय-समय पर विद्वानों ने ब्राह्मी तथा हड़प्पा की लिपि के संबंध स्थापित करने का प्रयास किया है। स्वयं वर्तमान-लेखक भी ब्राह्मी के समान फिनीशियन को हड़प्पा की मूल ध्वन्यात्मक-लिपि की संतान समझता है। मगर इस संबंध में स्मरणीय है कि प्राकृतविद्या-जनवरी-जून '2003 (संयुक्तांक) 0031

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