Book Title: Prakrit Vidya 2003 01
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 19
________________ ईसवी पूर्व दूसरी और पहली शती में उड़ीसा तथा पश्चिमी भारत में पर्वतों को काटकर देवालय बनाने की परम्परा विकसित हुई। उड़ीसा में भुवनेश्वर के समीप कई बड़ी गुफाएँ पत्थर की चट्टानों को काटकर बनाई गईं। यहाँ ‘खण्डगिरि' तथा 'उदयगिरि' नामक पहाड़ियों पर स्थित जैन गुफाएँ बहुत प्रसिद्ध है। इनमें एक प्रसिद्ध गुफा का नाम 'हाथीगुफा' है। उसमें कलिंग के जैन-शासक खारवेल का एक शिलालेख खुदा हुआ है। लेख से ज्ञात हुआ है कि ईसापूर्व चौथी शती में मगध के राजा महापद्मनन्द तीर्थंकर की एक मूर्ति कलिंग से अपनी राजधानी पाटलिपुत्र उठा ले गये थे। खारवेल ने ईसवी पूर्व दूसरी शती के मध्य में उस प्रतिमा को मगध से अपने राज्य में लौटाकर पुन: प्रतिष्ठापित किया। इस शिलालेख से पता चलता है कि तीर्थंकर-मूर्तियों का निर्माण नंदराज महापद्मनन्द के पहले प्रारम्भ हो चुका था। उत्तर-भारत में जैन-कला के जितने प्राचीन केन्द्र थे, उनमें मथुरा का स्थान महत्त्वपूर्ण है। मौर्यकाल से लेकर आगामी लगभग सोलह शताब्दियों से ऊपर के दीर्घकाल । में मथुरा में जैनधर्म का विकास होता रहा । वहाँ के चित्तीदार लाल बलुए पत्थर की बनी हुई कई हजार जैन कलाकृतियाँ अब मथुरा और उसके आसपास के जिलों से प्राप्त हो चुकी हैं। इनमें तीर्थंकर प्रतिमाओं के अतिरिक्त चौकोर आयागपट, वेदिका-स्तम्भ, सूची, तोरण तथा द्वार-स्तम्भ आदि हैं। मथुरा के जैन आयागपट (पूजा के शिलाखण्ड) विशेषरूप से उल्लेखनीय हैं। उन पर प्राय: बीच में तीर्थंकर मूर्ति तथा उसके चारों ओर विविध प्रकार के मनोहर अलंकरण मिलते हैं। स्वस्तिक, नन्द्यावर्त, धर्ममानक्य, श्रीवत्स, भद्रासन, दर्पण; कलश और मीनयुगल –इन अष्टमंगल-द्रव्यों का आयागपट्टों पर सुन्दरता के साथ चित्रण किया गया है। एक आयागपट्ट पर आठ दिक्ककुमारियाँ एक-दूसरे का हाथ पकड़े हुए आकर्षक-ढंग से मण्डल-नृत्य में संलग्न दिखाई गई हैं। 'मण्डल' या 'चक्रवाल' अभिनय का उल्लेख 'रायपसेणियसुत्त' नामक जैन-ग्रंथ में भी मिलता है। एक दूसरे आयागपट्ट पर तोरणद्वार तथा वेदिका का अत्यन्त सुन्दर अंकन है। वास्तव में ये आयागपट्ट प्राचीन जैनकला के उत्कृष्ट उदाहरण हैं। इनमें से अधिकांश अभिलिखित हैं, उन पर ब्राह्मी-लिपि में लगभग ई.पू. एक सौ से लेकर ईसवी प्रथम शती के मध्य तक के लेख हैं। ____ पश्चिमी भारत, मध्य भारत तथा दक्षिण में पर्वतों को काटकर जैन-देवालय बनाने की परम्परा दीर्घ-काल तक मिलती है। विदिशा' के समीप 'उदयगिरि' की पहाड़ी में दो जैन-गुफाएँ हैं। संख्या 'एक' की गुफा में गुप्तकालीन जैन-मन्दिर के अवशेष उपलब्ध हैं। उदयगिरि की संख्या 20 वाली गुफा भी जैन-मन्दिर है। उसमें गुप्तसम्राट कुमारगुप्त प्रथम के समय में निर्मित कलापूर्ण तीर्थंकर-प्रतिमा मिली है। गुजरात, महाराष्ट्र तथा कर्नाटक में पर्वतों को काटकर बनाये गये अनेक मन्दिर प्राकृतविद्या+जनवरी-जून '2003 (संयुक्तांक) 0017

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