Book Title: Prakrit Vidya 2000 10
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

View full book text
Previous | Next

Page 13
________________ यह उनकी मौलिक शोध थी, जो उन्होंने प्रजा को बतलाई; इससे अग्नि उत्पन्न कर उसमें अन्नादि पकाकर भोजन करने की परम्परा प्रवर्तित हुई। न केवल जैन-परम्परा में अग्नि की चर्चा है, अपितु विश्व के प्राचीनतम साहित्य' के रूप में विश्रुत 'ऋग्वेद' में भी ऋषिगण अग्नि के बारे में लिखते हैं त्वमग्ने:' -(ऋग्वेद, 2/1/1) अर्थात् तुम्हीं अग्निस्वरूप हो। 'अरिणी' -(ऋग्वेद, 3-7-3) “अरणिस्थ यथा ज्योति: प्रकाशान्तरकारणम् । तद्वच्छन्दोपि बुद्धिस्थ: श्रुतीनां कारणं पृथक् ।।" – (वाक्यपदीयम्, 1/46) अर्थ :- जिसप्रकार अरणि (शमी और पीपल की लकड़ी) में स्थित ज्योति दोनों की रगड़ से प्रकाशित होने में कारण है, उसीप्रकार बुद्धि (लब्धि) में स्थित श्रुतरूपज्ञान शब्द के प्रयोग से प्रकट होता है। इसी बात को आध्यात्मिकरूप में व्यक्त करते हुए ऋषिगण लिखते हैं ___'ब्रह्म वा अग्नि:' – (कौशीतकी ब्राह्मण, 9/1/5) अर्थ:- परमात्मा अग्नि के समान है, तेज:पुज रूप है। वह्निमूर्ति – (सहस्रनाम, 2/5) अर्थ :- अग्नि के समान ऊर्ध्वगमन स्वभाव होने से अथवा कर्मरूपी ईंधन को जलाने से आप 'वह्निमूर्ति' कहलाते हैं। 'योऽग्नौ तिष्ठन्नग्नेरन्तरो....यस्याग्नि: शरीरं' - (बृहदारण्यक उपनिषद्, 3/7/8) अर्थ:- जो आत्मा अग्निमय स्थित है और अनग्नि से भिन्न है। वही (अग्नि) उसका शरीर है। अग्नि का स्वरूप उष्णतामय है, उष्णता ही उसका लक्षण है। जैसाकि आचार्य भट्ट अकलंकदेव ने लिखा है 'यथा अग्नेरात्मभूत उष्णपर्यायो लक्षणं न धूम:' –(राजवार्तिक, 1/13/8) अर्थ:- अग्नि का आत्मभूत लक्षण उष्णता है, धूमादि नहीं। फिर भी विद्वानों ने इस अग्नि को अनेकरूप प्रतिपादित किया है.. एकोऽप्यग्निर्यथा तार्य: पार्य: दाळस्त्रिधोच्यते - (पञ्चाध्यायी, 21637) ___ अर्थ:- अग्नि यद्यपि एक ही है, तो भी वह (i) तिनके की अग्नि, (ii) पत्ते की | अग्नि और (iii) लकड़ी की अग्नि – इसप्रकार तीन प्रकार की कही जाती है। इन्हें ब्राह्मणाग्नि, क्षत्रियाग्नि और वैश्याग्नि के रूप में भी जाना जाता है। 'सुद्धागणी य अगणी य' - (मूलाचार, 5/211) अर्थ:- मेघ की अग्नि शुद्ध एवं 'ब्राह्मणवर्णा' मानी गयी है, तथा सूखी लकड़ियों प्राकृतविद्या अक्तूबर-दिसम्बर '2000 40 11

Loading...

Page Navigation
1 ... 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116