Book Title: Prakrit Vidya 2000 10
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 75
________________ साहित्य का सृजन हुआ। साथ यही एकमात्र प्राकृत थी, जो कि संस्कृतभाषा के सर्वाधिक निकट थी। इसीलिए भी इसमें निबद्ध साहित्य की विशिष्ट विद्वानों के लिए भी उपादेयता थी। शौरसेनी प्राकृतभाषा' लोकजीवन में सर्वाधिक प्रचलित भाषा थी, इसका प्रमाण हमें उन प्राचीन संस्कृत नाटकों से मिलता है, जिसमें अधिसंख्य पात्र इसी भाषा का प्रयोग करते हैं। ऐसी जीवन्त भाषा को अपने साहित्य का माध्यम बनाना किसी भी विवेकी व्यक्ति का स्वाभाविक निर्णय कहा जा सकता है। __ शौरसेनी प्राकृत संस्कृत भाषा के निकटवर्ती है। इससे यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि शौरसेनी ही सबसे प्राचीन प्राकृतभाषा है। 'भाषा' संज्ञा की दृष्टि से संस्कृत एवं प्राकृत दोनों भाषाओं ने वैदिक 'छान्दस्' भाषा से सहोदरा कन्याओं के समान जन्म लिया है। अत: विद्वानों ने संस्कृत एवं प्राकृत को सहोदरा बहिनें' कहा है। भाषिक दृष्टि से तो संस्कृत एवं प्राकृत समवर्ती भाषायें हैं। वैदिक छान्दस्' भाषा से ही दोनों का उद्भव होने के कारण संस्कृत' एवं 'प्राकृत' का एक-दूसरे पर प्रभाव पड़ना निश्चित है। इससे यह नकारा नहीं जा सकता कि ईसापूर्व की प्राकृत संस्कृत भाषा से घनिष्ठता लिए होगी और वही भाषा शौरसेनी प्राकृत' है— यह सिद्ध हो जाता है। ईसापूर्व का शौरसेनी-साहित्य :- ईसापूर्व का शौरसेनी-साहित्य मूलरूप में आज उपलब्ध नहीं है, परन्तु उनकी प्रतिलिपियाँ, टीका-साहित्य तथा उस साहित्य पर आधारित अन्य ग्रन्थ आज उपलब्ध हैं। सबसे पहले आचार्य पुष्पदन्त और आचार्य भूतबलि ने शौरसेनी प्राकृत में ही छक्खंडागम' के सूत्रों की रचना की। दिगम्बर जैनाचार्य कुन्दकुन्द ने शौरसेनी प्राकृत में विपुल साहित्य का सृजन किया। परन्तु इनके साहित्य को परवर्ती अनेक ग्रन्थकारों द्वारा अलग-अलग समय पर लिखे जाने के कारण क्षेत्रगत, कालगत तथा अनेक ग्रंथकारों द्वारा मूल-ग्रंथों पर टीका साहित्य, उन पर आधारित साहित्य की रचना करने से वैयक्तिक पुट तो आ ही जाता है; इसकारण पाठभेद मिलते हैं। अत: यह स्वीकारा जा सकता है कि इन ग्रंथकारों के ग्रंथों की भाषा शौरसेनी प्राकृत ही थी। शिलालेखों में प्रयुक्त प्राकृतभाषा :- विश्व में सबसे प्राचीन विस्तृत एवं प्रामाणिक शिलालेखीय साहित्य केवल सम्राट अशोक द्वारा लिखवाये गये अभिलेख ही हैं। इससे प्राचीन भी अभिलेख मिलते हैं; परन्तु साहित्य की दृष्टि से उनमें बहुत कमियाँ हैं। इसकारण अशोक के अभिलेख ही प्राचीन दस्तावेज' की मान्यता प्राप्त हैं। खारवेल का हाथीगुम्फा अभिलेख' भी इसीतरह का ईसापूर्व का महत्त्वपूर्ण, वर्षक्रम से सुव्यवस्थित विवरणवाला अभिलेख है। इनमें सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि ये सभी अभिलेख प्राकृतभाषा में ही लिखे हुए मिलते हैं। ___ अभिलेखों की भाषा एवं लिपि :- विद्वानों ने साहित्यिक प्राकृत से अशोक आदि के शिलालेखों की प्राकृत में भेद पाकर शिलालेखी प्राकृत' नाम से एक नयी प्राकृत का प्राकृतविद्या अक्तूबर-दिसम्बर '2000 0073

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