Book Title: Prakrit Vidya 2000 10
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

View full book text
Previous | Next

Page 76
________________ गठन कर दिया, जो भाषावैज्ञानिक दृष्टि से बिल्कुल अनुचित प्रयोग है। क्योंकि प्राकृतभाषा या अन्य किसी भी भाषा के देश, काल इत्यादि के आधार पर भेद या वर्गीकरण संभव है, लेखन-सामग्री के आधार पर कदापि नहीं। अशोक के अभिलेख बहुसंख्यक एवं भारत के प्राचीनतम अभिलेख होने के कारण तत्कालीन भारत की लिप्यात्मक, भाषात्मक एवं साहित्यिक स्थिति पर प्रकाश डालते हैं। अशोक ने अपने पश्चिमोत्तर प्रदेशों के अभिलेखों में यूनानी, ऐरेमाइक एवं खरोष्ठी आदि लिपियों का प्रयोग किया है, उसके शाहबाजगढ़ी' तथा 'मानसेहरा' अभिलेख खरोष्ठी लिपि के प्राचीनतम विस्तृत लेख है। शेष समस्त भारत में उसने 'ब्राह्मी लिपि' का प्रयोग किया। इस लिपि का रूप सर्वत्र समान है। ___ खारवेल के हाथीगुम्फा शिलालेख की भाषा सामान्यत: संस्कृतनिष्ठ प्राचीन शौरसेनी है। जिसमें कतिपय वर्णपरिवर्तनों में क्षेत्रीय 'ओड्रमागधी प्राकृत' का प्रभाव परिलक्षित होता है। यद्यपि इस शिलालेख में प्राचीन शौरसेनी की समस्त प्रवृत्तियाँ परिलक्षित नहीं होती, तो भी उसका आदिम रूप मानने में किसी भी प्रकार की विपत्ति नहीं है। विचारणीय बिन्दु 1. अशोक के अभिलेख तथा खारवेल के अभिलेख की लिपि अधिकांशत: 'ब्राह्मी लिपि' है। इसमें समस्या यह है कि प्राकृतभाषा में मूलत: 64 वर्ण हैं तथा प्रयोगत: 44 वर्ण ही हैं। अब यह विचारणीय हो जाता है कि अशोक के अभिलेखों में जो 'ब्राह्मी लिपि' प्रयुक्त मिलती है, क्या उनमें भी इतने ही वर्ण थे, अथवा इससे कम या अधिक थे? साथ ही स्वर, व्यंजन, संयुक्त-व्यंजन, मात्रा-लेखन, अंकलेखन एवं विराम-चिह्न –इन बिन्दुओं की भी उस ब्राह्मीलिपि में क्या व्यवस्था थी? अभिलेखों में ब्राह्मीलिपि का प्राचीन रूप है। इसकारण संयुक्त व्यंजन व मात्राओं का अन्तिम रूप से निर्णय नहीं कर सकते, तथा जो शब्द प्राकृत के नियमों के अन्तर्गत नहीं आते, उन्हें संस्कृतनिष्ठ' भी नहीं बता सकते। 2. 'ब्राह्मीलिपि' को एवं उसके स्वर, व्यंजन आदि 6 बिन्दुओं की दृष्टि से सूक्ष्मता से अध्ययन किये बिना भाषिक स्वरूप का भी निर्धारण निर्दोष विधि से संभव नहीं है। एक लिपि से दूसरी लिपि में लिप्यन्तरण करते समय यह ध्यान रखना अनिवार्य है कि उपरोक्त 6 बिन्दुओं की जैसी व्यवस्था मूलपाठ की लिपि में है. क्या वह लिप्यंतरण की जानेवाली लिपि में भी उपलब्ध है? 3. शिलालेखों की प्राकृत के रूपों में अंतर प्रधानत: भाषागत कारणों से न होकर लिपिगत कारणों से है :(अ) चूँकि उस समय संयुक्त व्यंजनों के लिखने का पूर्ण विकास नहीं हुआ था, अत: इनमें संयुक्ताक्षरों के प्रयोग कम हैं; तथापि जहाँ संयुक्ताक्षर का प्रयोग इष्ट था, 0074 प्राकृतविद्या अक्तूबर-दिसम्बर '2000

Loading...

Page Navigation
1 ... 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116