Book Title: Prakrit Vidya 2000 10
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 79
________________ भाषा-परिवार और शौरसेनी प्राकृत -डॉ० माया जैन भाषा के विषय में विचार करने पर यह तो निश्चित हुआ है कि व्यक्ति ने संकेतों और भावों के आदान-प्रदान के कारण जैसे-जैसे वाणी का प्रयोग किया, वैसे-वैसे ही बोलने की इच्छा के कारण शब्द-वाक्य को बल मिला और विभिन्न संपर्क एवं स्थान परिवर्तन के कारण भाषा के विविधरूप भी दृष्टिगोचर हुए। भौगोलिक परिस्थितियों के आधार पर एक से अनेक भाषायें बनती गईं। उनके प्रकार शाखा-प्रशाखा, परिवार-उपपरिवार एवं भाषा-विभाषा आदि के स्वरूप निर्धारित किये गये। विकास एवं विस्तार ____ भाषा की शक्ति, विकास और विस्तार को तभी प्राप्त होती है, जब वह आदान-प्रदान का रूप ले लेती है। आदिम मानव-समाज के संकेत कुछ ऐसे ही रहे होंगे, जिनके अनुसार भाव-प्रक्रिया एवं अभिव्यक्ति का पता चल जाता है। यदि एक नन्हे शिशु को आधार लेकर चलें, तो उसके रुदन में कई प्रकार के संकेत हैं। शिशु रोता है, स्तनपान करता है और चुप हो जाता है और जब वही शिशु स्तनपान छोड़कर खेलता है, तब उसके रुदन का संकेत अलग होता है। यदि वही रुदन करता रहे, तो यह स्पष्ट है कि वह किसी व्याधि से पीड़ित है। हर प्रकार के रुदन का एक ही अभिप्राय नहीं। इसीप्रकार भाषा का अभिप्राय एक नहीं, उसमें समयानुसार स्थान-परिवर्तन के कारण नये वातावरण एवं विभिन्न संपर्क के प्रभाव से परिवर्तन हुआ है। उसी परिवर्तन एवं भाषा-सृष्टि के आरंभ से निरन्तर जो कुछ भी प्रवाह हुआ, उसके आदि एवं अंत का पता नहीं। फिर भी भारतीय एवं पाश्चात्य दोनों ही परंपराओं ने भाषा-परिवार को बारह परिवारों में विभक्त किया है। भारोपीय परिवार, सेमिटिक परिवार, हैमेटिक परिवार आदि बारह परिवार भाषावैज्ञानिकों ने दिये हुए हैं। उन बारह भाषा-परिवारों में से प्राकृतभाषा का संबंध 'भारोपीय परिवार' से है। इस भाषा परिवार के भी आरमेनियन, बाल्टैस्लैलोनिक, अलवेनियम, ग्रीक, भारत-ईरानी या आर्य-परिवार, इटैलिक, कैल्टिक एवं जर्मन-परिवार आदि उपपरिवार के रूप में विख्यात हैं। प्राकृत का संबंध भारत-ईरानी 'आर्य परिवार' से है। इस परिवार के भी ईरानी शाखा, दरद शाखा और भारतीय आर्यशाखा परिवार हैं। इन प्राकृतविद्या अक्तूबर-दिसम्बर '2000 4077

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