Book Title: Prakrit Vidya 2000 10
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 110
________________ ब्र कमलाबाई जी को वर्ष 1999 ई० का 'स्त्री-शक्ति पुरस्कार' समर्पित सन् 1923 में कूचामन शहर, जिला नागौर (राजस्थान) में जन्मी ब्र० कमलाबाई जी ने 30 वर्ष की आयु में इन्होंने मात्र छह लड़कियों से अपना निजी आदर्श महिला विद्यालय खोला। आज इस स्कूल में 2000 लड़कियाँ विद्यार्जन कर रही हैं। इनमें से अधिकांश छात्रायें समाज के पिछड़े वर्गों तथा जनजातीय समुदायों की हैं। इन्होंने 650 छात्राओं की आवास-क्षमतावाला एक छात्रावास भी स्थापित किया। विशेषरूप से ग्रामीण तथा जनजातीय क्षेत्रों में से निरक्षरता का उन्मूलन करने के लिए इनके अद्वितीय एवं उत्कृष्ट योगदान हेतु, इन्हें वर्ष 1998 में रोटरी इन्टरनेशनल इंडिया अवार्ड' से सम्मानित किया गया। विशेष रूप से पिछड़े एवं जनजातीय क्षेत्रों की महिलाओं तथा लड़कियों में साक्षरता के प्रचार तथा शक्ति-सम्पन्नता के लक्ष्य के प्रति समर्पण के कारण ब्रह्मचारिणी कमला बाई को देवी अहिल्या बाई होलकर स्त्री शक्ति पुरस्कार, 1999' से सम्मानित किया गया है। इस सुअवसर पर प्राकृतविद्या-परिवार' की ओर से हार्दिक बधाई। –सम्पादक ___डॉ० हुकमचन्द भारिल्ल के अभिनन्दन-ग्रंथ का लोकार्पण _ विश्वविख्यात आध्यात्मिक प्रवक्ता डॉ० हुकमचन्द भारिल्ल के अभिनन्दन-ग्रंथ तत्ववेत्ता : डॉ० हुकमचन्द भारिल्ल' का लोकार्पण राजधानी दिल्ली के हृदय-स्थल परेड ग्राउण्ड में पूज्य आचार्यश्री विद्यानन्द जी मुनिराज की पावन सन्निधि में हजारों धर्मानुरागी भाईयों-बहनों की उपस्थिति में दिनांक 8 अप्रैल, 2001 को अत्यंत गरिमापूर्वक सम्पन्न हुआ। इस अवसर पर पूज्य आचार्यश्री ने कहा कि जो मेरे पास है, वह भी मेरा नहीं है; जो ऐसा मानता है, वही श्रेष्ठ विद्वान् है। राग को दुख का कारण बताते हुए उन्होंने कहा कि जिसमें सबका कल्याण है, वही धर्म है। जो अहिंसा को पालता है, वही जैन है। आचार्यश्री ने भगवान महावीर महावीर के 2600वें जन्मकल्याणक महोत्सव के प्रसंग पर आह्वान करते हुए कहा कि महावीर का संदेश घर-घर पहुँचायें। उन्होंने डॉ० भारिल्ल के कृतित्व की सराहना करते हुये उनके सामाजिक योगदान को अतुलनीय बताया तथा कहा कि उन्होंने जो विद्वानों की नई पीढ़ी निर्मित की है, वह इस देश और समाज की अमूल्य निधि है। ___मुख्य अतिथि सुश्री निर्मलाताई देशपांडे जी ने अभिनन्दन-ग्रन्थ का लोकार्पण किया और कहा कि राजा तो अपने देश में पूजा जाता है, जबकि विद्वान् सर्वत्र पूजा जाता है। आदिकाल से शिक्षा देने का कार्य जैन शिक्षकों, विद्वानों ने किया लेकिन अपना नाम नहीं चाहा। वे समाज में घुल-मिल कर रहे। आचार्यश्री विद्यानन्द जी ने भारतीय संस्कृति के पुनर्जागरण में नई चेतना और जागृति पैदा की है। हमें भगवान् महावीर के अहिंसा, अनेकान्त एवं अपरिग्रह सिद्धांतों को आचरण में उतारना है। विनोबा और गांधी ने भी उनका अमल किया। समारोह की अध्यक्षता करते हुए भारतीय दिगम्बर जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी के अध्यक्ष साहू रमेश चन्द्र ने डॉ० भारिल्ल को उत्सवपुरुष बताते हुए कहा कि 00 108 प्राकृतविद्या अक्तूबर-दिसम्बर '2000

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