Book Title: Prakrit Vidya 2000 10
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 90
________________ भाषा के आधिपत्य को हटाकर उसके विप्रत्व और शिष्टत्व के वर्तुल से निकलकर जनभाषा या मातृभाषा प्राकृत में ही अपने उपदेश दिये। " जो बालक, महिला आदि को सुबोध सहजगम्य है और सकल भाषाओं का मूल है. यह प्राकृतभाषा है ।" यह भी ज्ञातव्य है कि 'पुष्पदन्त' और 'भूतबलि' नामक दोनों आचार्यों ने द्रविड़ देश में जाकर 'षट्खण्डागम' के सूत्रों की रचना इसी प्राकृतभाषा प्राचीन शौरसेनी में की। इसके पश्चात् तो कुन्दकुन्द आदि आचार्यों ने इस भाषा को सार्वभौमिकता प्रदान की । इसप्रकार दिगम्बर जैन आगम-ग्रन्थों की यह मूलभाषा बन गयी । 2 संस्कृत का रूप स्थिर हो जाने पर उसकी कठिनता के कारण जन समाज की भाषा अपने ही क्षेत्र में उन्नति करती गयी। उसके बाद उसका सर्वप्रथम रूप हमें अशोक के शिलालेखों तथा बौद्ध और जैनधर्म ग्रन्थों में मिलता है। प्राचीन प्राकृत को 'पाली' नाम भी दिया गया है । 'पाली' में भी साहित्यिक गांभीर्य आने के कारण उसी के साहचर्य से निकली हुई साधारण भाषा हमारे सामने मध्यकालीन प्राकृत के विशिष्ट रूप में आती है।” भरत के समय तीसरी शताब्दी ई०पू० में यही लोकभाषा स्पष्ट पृथक् स्वीकृत भाषा हो गयी । " संस्कृत पण्डितों के अनुसार प्राकृतभाषा 'असंस्कृत भाषा' के रूप में कही गयी। इस साहित्यिक प्राकृत के भी मुख्यरूप से पाँच भेद हैं1. शौरसेनी 2. पैशाची 3. मागधी 4. अर्धमागधी 1088 यह मूलत: मथुरा या शूरसेन प्रदेश की बोली थी। यह भारत के पश्चिमोत्तर प्रदेश की बोली थी । 5. महाराष्ट्री प्राकृत “जब साहित्य का निर्माण इन प्राकृतों में होने लगा और वैयाकरणों ने इन्हें व्याकरण के कठिन नियमों में बांधना प्रारम्भ कर दिया, तो जनसाधारण की भाषा में इस साहित्यिक प्राकृत से फिर अन्तर होना प्रारम्भ हो गया । जिन बोलियों के आधार पर प्राकृतभाषाओं का निर्माण हुआ था, वे अपने स्वाभाविक रूप में विकसित हो रहीं थीं तथा प्राकृत की साहित्यिकता से निकलने का प्रयत्न कर रहीं थीं। तभी प्राकृत के वैयाकरणों ने उसे हीनदृष्टि से देखते हए 'अपभ्रंश' नाम दे दिया । वैयाकरणों ने तो अपने व्याकरण के सिद्धान्त से इसे भ्रष्ट हुई साबित किया; पर वस्तुत: यह 'अपभ्रंश' प्राकृत की विकसित अवस्था का ही नाम है। मार्कण्डेय के विचार से मुख्य 3 अपभ्रंश भाषायें हैं— नागर, ब्राचड, उपनागर । प्राकृत में शौरसेनी प्राकृत की तरह अपभ्रंश में 'नागर अपभ्रंश' का स्थान महत्त्वपूर्ण है। 'नागर अपभ्रंश' मुख्यत: गुजरात में बोली जाती थी, 'ब्राचड़' प्राकृतविद्या+अक्तूबर-दिसम्बर '2000 - यह देश के पूर्वीभाग अर्थात् मगध प्रदेश की भाषा है। यह मागधी और शौरसेनी के बीच के भाग की भाषा थी, श्वेताम्बर जैन आगमों की अर्धमागधी में इसका स्वरूप अधिक कृत्रिम कर दिये जाने से यह लोकभाषा नहीं बन सकी । यह शौरसेनी का परवर्ती विकसित रूप है। 25

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