Book Title: Prakrit Vidya 2000 10
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 87
________________ है। इसे 'चट' कहते हैं। पिछला हिस्सा 'टोटा' कहलाता है। पूर्ण विकसित मोर चंदवे वाले 140 पंख होते हैं। एक पंख दो-तीन ग्राम का होता है। एक मोर के कुल पंख 250 ग्राम से अधिक वजन के नहीं होते। विश्व के कई देशों में भारत से लाखों रुपये के मोरपंखों का निर्यात भी किया जाता है । मोर-पंखों के अनेक उपयोग हैं । आज श्रृंगार और पूजा-पाठ सहित औषधि के रूप में मोर पंखों का प्रयोग किया जाता है। देवी-देवताओं पर मोर पंख चढ़ाये जाते हैं। भूटान और लद्दाख के बौद्ध विहारों में देव-प्रतिमाओं के आगे दायें-बायें गुलदानों में मोर-पंख रखे जाते हैं। मोर के पंखों से देवताओं पर चंवर दुलाए जाते हैं । नारायण श्रीकृष्ण के मुकुट की शोभा भी मोर पंख ही था । बच्चे अपनी पुस्तकों में मोर का चन्दवा रखते हैं । श्रृंगार के विभिन्न उपयोगों में मोर पंख के विविध भाग काम में आते हैं। कई क्षेत्रों में आदिवासी महिलायें मोर पंखों से अपना श्रृंगार करती हैं और इनके गहने बनाकर शरीर के विभिन्न भागों में धारण करती हैं । गोपाष्टमी' और 'दीपावली' पर पशुधन का श्रृंगार मोर पंख से किया जाता है । परम्परागत दवाओं में मोर पंख के अनेक उपयोग हैं। मोर पंख को विशेष विधि से जलाकर बनाई गई मयूर - पिच्छ - भस्म आयुर्वेदिक औषधि के रूप में अनेक रोगों में लाभकारी मानी गयी है। मोर का चंदा जख्मों पर तथा जले हुए स्थान पर बांधने से दर्द मिट जाता है । हमारे देश के कुछ भागों में आज भी बच्चे को मोर पंख से हवा करके उनकी नजर उतारी जाती है। कुछ लोग बुरी नजर से अपने बच्चों को बचाने के लिए बच्चों के गले में मोर-पंख बांध देते हैं। कहा जाता है कि यह कुदृष्टि का प्रभाव अपने ऊपर ले लेता है। - (साभार उद्धृत पंजाब केसरी, दैनिक, 3 अक्तूबर 2000 ) राज्यशासन की कठिनता " तपसा हि समं राज्यं, योगक्षेमप्रपञ्चतः । प्रमादे सत्यध:पातादन्यथा च महोदयात् । । ” अर्थ : - ( आचार्य वादीभसिंह, क्षत्रचूडामणि, 11/8 ) :- राज्य करना तपस्या करने के समान है, क्योंकि इसमें योग की कुशलता के लिए निरन्तर सावधान रहना पड़ता है। यदि जरा भी प्रमाद ( लापरवाही) हो जाये, तो तत्काल अध:पतन हो जाता है; और सावधानी रखी जाये, तो महान् अभ्युदय हो सकता है। ** प्राकृतविद्या अक्तूबर-दिसम्बर 2000 00 85

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