Book Title: Prakrit Vidya 2000 10
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 72
________________ 7.रूपकशास्त्र के विरुद्ध स्थिति :- रूपकशास्त्रीय नियमों में जिन पात्रों को प्राकृत बोलने का विधान किया गया हो, उन्हें संस्कृत प्रयोग करते हुए दिखाना उसीप्रकार की स्थिति का निर्माण करता है, जैसे रामचन्द्र जी के जीवन को मंचित करने में राम का अभिनय करनेवाला पात्र यदि अंग्रेजी' या 'उर्दू' में बोलने लगे, तो स्थिति हास्यास्पद हो जाती है। यह नितान्त अस्वाभाविक एवं मर्यादा-विरुद्ध स्थिति है। __ आज भी पात्रानुकूल भाषा का चयन आधुनिक नाटक लेखक, निर्देशक से लेकर चलचित्रों आदि की पटकथा एवं शब्दांकन में भी सावधानीपूर्वक किया जाता है। इसतरह संस्कृत के प्रयोग से न केवल स्वरूप एवं परम्परा की हानि होती है. अपित स्वाभाविकता भी नष्ट होती है। यह आचार्य भरतमुनि आदि रूपकशास्त्रीय विशेषज्ञों के द्वारा निर्धारित सिद्धान्तों, मानदण्डों एवं निर्देशों का खुला उल्लंघन है, जो कि किसी भी स्थिति में स्वीकार्य नहीं कहा जा सकता है। इसकी जगह संस्कृत में अन्वयार्थ, अनुवाद, भावार्थ, टिप्पणी आदि कुछ भी दी जा सकती है; क्योंकि इससे मूललेखक के मूलपाठ की स्वरूप-हानि नहीं होती है। किन्तु संस्कृत-छाया से मूलपाठ की ही हानि होने से इसे कभी भी क्षम्य नहीं माना जा सकता है। इसका घोर-विरोध एवं पूर्णतया प्रतिबंध होना ही चाहिए, ताकि हमारे नाटककारों के ग्रन्थों का मूलस्वरूप सुरक्षित रह सके तथा उनकी स्वाभाविकता, सजीवता एवं चित्ताकर्षण क्षमता बनी रहे। 'नेता' के लक्षण नेता विनीतो मधुरस्त्यागी दक्ष: प्रियंवदः। रक्तलोक: शुचिर्वाग्मी रूपवंश: स्थिरो युवा।। बुद्धचुत्साह-स्मृति-प्रज्ञा-कला-मान-समन्वितः । शूरो दृढश्च तेजस्वी शास्त्रचक्षुश्च धार्मिकः ।।" – (दशरूपकम्, 2-1/2) अर्थ :- नेता विनयवान् होता है, मधुरभाषी होता है, त्यागवृत्ति वाला होता है, (अपना कार्य करने में) निपुण होता है, प्रियवचन बोलता है, लोकप्रिय होता है, पवित्र जीवनवाला होता है, वाग्मी (वक्तृत्वकला में निष्णात) होता है, प्रतिष्ठित वंशवाला (अर्थात् जिनके वंश में कलंकित जीवन किसी का भी न हो) होता है, स्थिर चित्तवाला होता है, युवा (कर्मठ) होता है, बुद्धि-उत्साह-स्मृतिक्षमता-प्रज्ञा-कला-सम्मान से समन्वित होता है, शूरवीर होता है, दृढ़मनस्वी होता है, युवा (कर्मठ) होता है, बुद्धि-उत्साह-स्मृतिक्षमता-प्रज्ञा-कला-सम्मान से समन्वित होता है, शूरवीर होता है, दृढ़मनस्वी होता है, तेजवान् होता है, शास्त्रचक्षुः (अर्थात् शास्त्रविरुद्ध कार्य कभी भी न करनेवाला) होता है और धर्मप्राण होता है। ** 0070 प्राकृतविद्या अक्तूबर-दिसम्बर '2000

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