Book Title: Prakrit Vidya 2000 10
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 61
________________ 'यति-प्रतिक्रमण' की विषयगत समीक्षा –श्रीमती रंजना जैन प्राकृत-वाङ्मय में अभी तक जितनी भी कृतियाँ प्राप्त होती हैं, उनमें पडिक्कमणसुत्त' को परम्परागत पद्धति से प्राचीनतम माना जाता है। यह भी कहा जाता है कि प्रतिक्रमण की परम्परा मात्र प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव एवं अंतिम तीर्थकर वर्धमान महावीर के काल में ही विशेषत: रही है। प्रतिक्रमण' यतियों एवं श्रावकों दोनों को अनिवार्य माना गया है, अत: इसके यति-प्रतिक्रमण' एवं 'श्रावक-प्रतिक्रमण' —ऐसे दो मूलभेद मिलते हैं। इनमें से 'यति-प्रतिक्रमण' की विषयगत समीक्षा इस शोधपूर्ण आलेख में विदुषी लेखिका ने श्रमपूर्वक प्रस्तुत की है, जो अवश्य ही पठनीय भी है और मननीय भी। –सम्पादक 'वर्तमान में प्रचलित प्रतिक्रमण के कर्ता वर्तमान में प्रचलित श्रावक-प्रतिक्रमण एवं यति-प्रतिक्रमण के कर्ता 24वें तीर्थंकर भगवान् महावीर के प्रधान शिष्य 'इन्द्रभूति गौतम' हैं, जिन्हें गौतम गणधर के नाम से भी जाना जाता है। इनका काल ईसापूर्व छठवीं शताब्दी है। ___ इन्द्रभूति का जन्म ईस्वी पूर्व 607 में हुआ था। इनके पिता का नाम— 'वसुभूति' तथा माता का नाम 'पृथ्वीदेवी' था। इनके पिता अर्थसंपन्न विद्वान् एवं अपने गाँव के मुखिया थे। इनकी जाति ब्राह्मण एवं गोत्र गौतम था। इन्द्रभूति व्याकरण, काव्य, कोष, छन्द, अलंकार, ज्योतिष, सामुद्रिक, वैद्यक और वेद वेदांगादि चौदह विधाओं में पारंगत थे। सामान्यत: तो संपूर्ण द्वादशांग गौतम गणधर के द्वारा वर्णित कहा जाता है, लेकिन इनकी व्यक्तिगत रचना मात्र एक ही मानी गयी है-'पडिक्कमणसुत्त'। जिस दिन भगवान् महावीर को निर्वाण हुआ, उसी दिन गौतम गणधर को केवलज्ञान की प्राप्ति हुई। उन्होंने केवली की पर्याय में बारह वर्षों तक विविध देशों में विहार कर राजगृह के विपुलगिरि' से निर्वाण-प्राप्त किया। _ 'प्रतिक्रमणसूत्र' नामक ग्रंथ की भाषा 'शौरसेनी प्राकृत है, तथा यह गद्य-पद्य मिश्रित शैली में निबद्ध है। यह श्रमण-परम्परा के नैतिक एवं आध्यात्मिक गुणों तथा अहिंसक आचारशैली का प्राचीनतम निदर्शन है। जिसका सांस्कृतिक एवं समाजशास्त्रीय प्राकृतविद्या अक्तूबर-दिसम्बर 2000 4059

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