Book Title: Prakrit Vidya 01
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

Previous | Next

Page 6
________________ 103 107 112 113 117 122 124-127 18. वर्द्धमान महावीर : जीवन एवं दर्शन डॉ० प्रेमचन्द रांवका 19. भगवान् महावीर और अहिंसा-दर्शन डॉ० सुदीप जैन 20. स्मृति के झरोखे से श्रीमती त्रिशला जैन 21. त्रिशला-कुंवर की तत्त्वदृष्टि डॉ० माया जैन 22. भगवान् महावीर के 'अनेकान्त' श्रीमती रंजना जैन का सामाजिक पक्ष 23. नारी सम्मान की प्रतीक 'चन्दना' कु० ममता जैन 24. पुस्तक-समीक्षा (i) मध्यप्रदेश का जैनशिल्प (ii) धवलगान (iii) रत्नाकर (iv) चामुण्डराय वैभव (v) शौरसेनी प्राकृतभाषा एवं उसके साहित्य का संक्षिप्त इतिहास 25. अभिमत 26. समाचार-दर्शन 27. इस अंक के लेखक/लेखिकायें 124 125 125 126 127 128 131 143 प्राचीन भारत में अहिंसक संस्कार “सारे देश में कोई अधिवासी न जीवहिंसा करता है, न मद्य पीता है और न लहसुन-प्याज खाता है; सिवाय चांडाल के। दस्यु को चांडाल कहते हैं। वे नगर के बाहर रहते हैं और जब नगर में पैठते हैं, तो सूचना के लिए लकड़ी बजाते चलते हैं; ताकि लोग जान जायें और बचकर चलें कहीं उनसे छू न जायें। जनपद में सूअर और मुर्गी नहीं पालते, न जीवित पशु बेचते हैं, न कहीं सूनागार और मद्य की दुकानें हैं। क्रय-विक्रय में कौड़ियों का व्यवहार है। केवल चांडाल मछली मारते, मृगया करते और मांस बेचते हैं।" -(चीनी यात्री फाह्यान का यात्रा-विवरण, पृष्ठ 64) ** 004 प्राकृतविद्या-जनवरी-जून'2001 (संयुक्तांक) + महावीर-चन्दना-विशेषांक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 ... 148