Book Title: Prakrit Vidya 01
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 4
________________ डॉ० देवेन्द्र कुमार शास्त्री डॉ० उदयचन्द्र जैन सम्पादक- मण्डल डॉ० जयकुमार उपाध्ये प्रबन्ध सम्पादक डॉ० वीरसागर जैन श्री कुन्दकुन्द भारती ( प्राकृत भवन) 18 - बी, स्पेशल इन्स्टीट्यूशनल एरिया, नई दिल्ली- 110067 फोन (011)6564510 फैक्स (011) 6856286 प्रो० ( डॉ० ) प्रेमसुमन जैन प्रो० ( डॉ० ) शशिप्रभा जैन 2 Jain Education International Kundkund Bharti (Prakrit Bhawan) 18-B, Spl. Institutional Area New Delhi - 110067 Phone (91-11) 6564510 Fax ( 91-11) 6856286 'आम्नाय ' का वैशिष्ट्य “वाचना- पृच्छनानुप्रेक्षाम्नायधर्मोपदेशाः ।” अर्थात् वाचना, पृच्छना, अनुप्रेक्षा, आम्नाय और धर्मोपदेश – ये पाँच स्वाध्याय अंग हैं। “अष्टस्थानोच्चारविशेषेण यच्छुद्धं घोषणं पुनः पुनः परिवर्तनं स आम्नाय: कथ्यते ।” - (आ० श्रुतसागर सूरि, तत्त्वार्थवृत्ति, नवम अध्याय, 25 ) कण्ठ, तालु आदि आठ उच्चारण-स्थानों की विशेषता से जो शुद्ध • घोषण/उच्चारण बारम्बार परिवर्तनपूर्वक किया जाता है, उसे 'आम्नाय ' कहते हैं । धन- कन- कंचन- २ - राजसुख, सबहिं सुलभ कर जान । दुर्लभ है संसार में, एक यथारथ ज्ञान ।। कातन्त्रव्याकरणम् 'कातन्त्रं हि व्याकरणं पाणिनीयेतरव्याकरणेषु प्राचीनतमम् । अस्य प्रणेतृविषयेऽपि विपश्चितां नैकमत्यम्। एवमेव कालविषये नामविषये च युधिष्ठिरो हि कातन्त्रप्रवर्तनको विक्रमपूर्व तृतीय - सहस्राब्दीति मन्यते ।' - लिखक : लोकमणिदाहलः, व्याकरणशास्त्रेतिहासः, भारतीय विद्या प्रकाशन, दिल्ली, पृष्ठ 260 ) प्राकृतविद्या जनवरी-जून 2001 (संयुक्तांक) महावीर - चन्दना - विशेषांक For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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