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डॉ० देवेन्द्र कुमार शास्त्री डॉ० उदयचन्द्र जैन
सम्पादक- मण्डल
डॉ० जयकुमार उपाध्ये
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'आम्नाय ' का वैशिष्ट्य
“वाचना- पृच्छनानुप्रेक्षाम्नायधर्मोपदेशाः ।”
अर्थात् वाचना, पृच्छना, अनुप्रेक्षा, आम्नाय और धर्मोपदेश – ये पाँच स्वाध्याय
अंग हैं। “अष्टस्थानोच्चारविशेषेण यच्छुद्धं घोषणं पुनः पुनः परिवर्तनं स आम्नाय: कथ्यते ।” - (आ० श्रुतसागर सूरि, तत्त्वार्थवृत्ति, नवम अध्याय, 25 ) कण्ठ, तालु आदि आठ उच्चारण-स्थानों की विशेषता से जो शुद्ध • घोषण/उच्चारण बारम्बार परिवर्तनपूर्वक किया जाता है, उसे 'आम्नाय ' कहते हैं ।
धन- कन- कंचन- २
- राजसुख, सबहिं सुलभ कर जान । दुर्लभ है संसार में, एक यथारथ ज्ञान ।।
कातन्त्रव्याकरणम्
'कातन्त्रं हि व्याकरणं पाणिनीयेतरव्याकरणेषु प्राचीनतमम् । अस्य प्रणेतृविषयेऽपि विपश्चितां नैकमत्यम्। एवमेव कालविषये नामविषये च युधिष्ठिरो हि कातन्त्रप्रवर्तनको विक्रमपूर्व तृतीय - सहस्राब्दीति मन्यते ।'
- लिखक : लोकमणिदाहलः, व्याकरणशास्त्रेतिहासः, भारतीय विद्या प्रकाशन, दिल्ली, पृष्ठ 260 )
प्राकृतविद्या जनवरी-जून 2001 (संयुक्तांक) महावीर - चन्दना - विशेषांक
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