Book Title: Prakrit Kathasangraha
Author(s): Jinvijay
Publisher: Gujarat Puratattva Mandir Ahmedabad

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Page 8
________________ सगरसुअ कहायणम् करुणं जीवावहे इमं । एयम्मि अवसरे पचा तत्थ मान्तसामन्ता, पणमिऊण उवविट्ठा अत्थाणे । नरिन्देण य आणत्तो वेज्जो — कुणसु निविसमेयं, । वेजेण मुणियनरिन्दसुयमरणेण भाणयं 'जम्मि गोत्ते कुले वा कोइ न मओ, जइ ताओ भूई आणिज्जइ, ता जीवावेमि 5 तीए इमं । मग्गिया दिएण भूई जाव, सहस्ससो घरे जायाइं बन्धुमरणाइं । साहियं देव, नत्थि विज्जोवदित्थो (इए लम्भो' । राइणा भणिय · जइ एवं, ता किं नियपुतं सोएसि ? सव्वतियणसाहारणमिम मरणं, भणिय च कि अत्थि कोइ भुवणम्मि जस्स जायन्ति नेव पावाई। 10 नियकम्मपरिणईए जम्मणमरणाइ संसारे? ता माहण, मा रुयसु, मुश्च सोयं, कज्ज चिन्तेसु, कुणसु अप्पहियं, जाव न तुम पि एवं कवलिज्जसि मच्चुसीहेणं । विप्पेण भणियं 'जाणामि अहमेयं, परं पुत्तमन्तरेण संपइ चेव मे कलक्खओ होइ । दुहियाणाहवच्छलो अप्पडिहयपयावो सयलपयापालणनिरओ देवो, 15 ता देसु पुत्तजीवावणेण माणुसभिक्खं'। रन्ना भणियं भद्द, असक्कपडियारं विहिविलसियं । भणियं च सीयन्ति सव्वसत्थाई एत्थ, न कमन्ति मन्ततन्ताई। अछिपहरणाम्म य विहिम्मि कि पोरुसं कुणउ ? | ता परिचयसु सोगं, करेसु परलोगहियं । मुक्खो चेव करेइ हिए 20 नढे, मए वा सोगं । विप्पेण भणिय : महाराय, जइ सच्चमेयं, न कायव्वो एत्थ जाणएण सोगो, ता तुमं पि मा करेज्जसु सोगं । असंभावणिजं तुम्ह सोयकारणं जायं'। तओ संभन्तेण रन्ना पुच्छिय 'भो विप्प केरिस सोयकारण ? ' विप्पेण भणियं · देव, सहि पि तुह सुयसहस्सा कालगया, । सोऊण इमं राया विजुप्पहारहओव्व 25 नट्ठचेयणो सिंहासणाओ मुच्छाविहललो निवडिओ धरणिविटे। मुच्छावसाणे सोगाऊरियमणो मुक्तकण्ठं रोविऊण पलावे काउ .आढत्तो ' हा पुत्ता, हा हिययदइया, हा बन्धुवल्लहा, हा सुसहावा, हा विणीया, हा सयलगुणनिहिणो, कत्थ . Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org

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