Book Title: Prakrit Kathasangraha
Author(s): Jinvijay
Publisher: Gujarat Puratattva Mandir Ahmedabad

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Page 11
________________ प्राकृत कथासंग्रह कोदवियत्ति जाओ लोए मणन्ति । कहिं चि तत्यागओ करी, तञ्चलणेण मदिया ते । तओ नाणाविहासु दुक्खपउरासु कुजोणिसु परिममिऊण सुइरं, अणन्तरं भवे किंपि कऊण तहाविहं सुहकम्म, उववन्ना सगरसुयत्ताए सहि. पि सहम्सा, तक्कम्मसेसवसेण य पत्ता 5 इमं मरणवसणं । सो वि कुम्भयारो नियआउक्खए मरिऊण जाओ एगम्मि सन्निवेसे धणसमिद्धो वणिओ।तयणन्तरंकयसुकयकम्मो संजाओ मरिऊण नरवई। सुहाणुबन्धसुहकम्मोदएण पडिवन्नो मुणिधम्म, काऊण य कालं गओ सुरलोयं । तत्तो चुओ जण्हुसुओ जाओ सि तुमं 'ति । इमं च भगीरही सोऊण संवेगमुवगओ भयवन्तं वन्दिऊण 10 सभवणं गओ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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