Book Title: Prakrit Kathasangraha
Author(s): Jinvijay
Publisher: Gujarat Puratattva Mandir Ahmedabad
View full book text
________________
•
५१ तिब्रखक्सेण, अप्फालियो कुम्भ-भाए, महुर-वयणेहिं मेलाविओ मच्छरं करी । तओ समुच्छलिओ साहुकारों; मयइ कुमारों-त्ति परिय बन्दिणा । नीओ खम्भुट्ठाणं, आगओ तमुद्देर्स नरवई । दट्ठण तं अणण्ण-सरिस चेद्वियं विम्हयं गओ भणिउ पयत्तो को उण * पूसो ? ' तओ कुमार - वइयराभित्रेण साहिओ वुत्तन्तो मन्तिणा । तओ तुट्ट राइणा नीओ निय-भवणं कुमारो, काराविओ मज्जणभोयगाइ- उचिय-करणिज्जं । तओ भोयणावसाणे दिन्नाओ अट्ठ धूयाओ कुमारस्स । सोहण-दिन- मुहुत्तेण वित्तं पाणिगहणं । नहा सुई ढिया तत्थ कइवय-दिणे ।
C
10
त
अनया एगा महिला आगन्तृण कुमार-समीवं भणिजं पचत्ता, जहा 'कुमार, अत्पि तर सहवत्त व्वं किं पि' । तेण वृत्तं 'मण !" तीए बुत्ते ' अत्थि इहेव नयरीए वेसमणो नाम सत्यवाही, तरस घूया सिरिमई नाम । सा मए बाल-भाबाओ आरम्भ पालिया, जा तुम हस्पि संभमाओ रक्खिया । तीए हत्थि संभमुच्चरियाए उज्झि15 ऊण भयं, जीविय-दायगो त्ति मुणिऊण तुमं साहिलास पलोइओ । अच्च्चन्त- सुन्दर - रूव- जोव्वण-लायण्ण-कला-कोसलाण पगरिसो त्ति काऊं समुप्पन्नो ताए तुज्झोवरि दढमणुराओ । तओ सप्पाभि से चैव पलोमाणी श्रम्मिय स्व लिहिय व्वं कलिय व्व टङ्ककरिय व्व निच्चल-निहित्त- लोयणा खणमेकं ठिया । बोली हत्यि20 सभमे कहकहावे परिजणेण नीया निय-मन्दिरं । तव्थ वि न मज्जणभौमायं देह-द्वि करेइ, केवलं मोणेण अच्छइ । ताहे मए वुत्ता 'पुत्ति, की माण्डचिय असब्भाविणी जाया, जेण मंझ वि अवहीसि वयण ? ' ताव सविलक्ख हसिऊण भणिये तीए किम! तुम्हाण व अकहाणिज्जमत्थि ? किं तु लज्जा एत्थावराहई; ता 25 सुब्बर्ड, जेणाहं हस्थि-संगमाओं रक्खिया, तेण सह पाणिग्रहणं न ने होइ, तो में अवस्लं मरणं सरणं ति । तभी एचमायणिऊण य कहिनो तीर पिउणो दुतन्तों । तेणावि सुह समीने हे वैसिया
G
1
Jain Education International
बम्मदत्त
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102