Book Title: Prakrit Kathasangraha
Author(s): Jinvijay
Publisher: Gujarat Puratattva Mandir Ahmedabad

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Page 64
________________ ६० प्राकृत कथासंग्रह यणमेएण । सो महाणुभावो दाया अयलो पेसेइ पुणो पुणो बहुयं दव्व-जायं । ता तं चेव अङ्गी-करेसु सव्वप्पणयाए । न एकमि पडियारे दोन्नि करवालाई मायन्ति, न य अलोणियं सिलं कोइ चट्टेइ । ता मुञ्च जूयारियं इमं'ति । तीए भणियं ' नाहं अम्ब, 5 एगन्तेण धणाणुरागिणी, गुणेसु चे। मे पडिबन्धो । ' जणणीए भाणयं । केरिसा तस्स जूयकारिस्स गुणा ? ' तीए भणियं · अम्ब, केवल-गुणमओ खु सो; जओ धीरो उदार-चित्तो दक्खिण्ण-महोयही कला-निउणो। पिय-भासी य कयण्णू गुणाणुराई विसेसन्नू ॥ 10 अओ न परिचयामि एयं । तओ साऽणेगेहिं दिट्ठन्तेहिं आढत्ता पडिबोहिउं: अलत्तए मग्गिए तरिसं पणामेइ, उच्छु खण्डे पत्थिए छोइयं पणामेइ, कुसुमेहिं जाएहिं बेण्ट-मेत्ताई पणामेइ । चोइया य पडिभणइ : जारिसमेयं, तारिसो एसो ते पिययमो, तहा वि तुमं न परिच्चयासि ।' देवदत्ताए चिन्तियं 'मूढा एसा, तेणेवंविहे दिट्ठन्ते 15 देइ।' तओ अन्नया भाणया जणणी अम्मो मग्गेहि अयलं उच्छं!" कहियं च तीए तस्स । तेण वि सगडं भरेऊण पेसियं । तीए भाणयं 'किमहं करिणिया, जेणेवंविहं स-पत्त-डालं उच्छु पभूयं पेसिज्जइ'। तीए भाणयं पुत्ति, उदारो खु सो, तेण एवं पेसियं' ति। चिन्तियं 20 च ण 'अन्नाणं पि सा दाहि त्ति ।' अवर-दियहे देवदत्ताए भाणिया माहवी ' हला भणाहि मूलदेवं, जहा उच्छूण उवरि सद्धा देवदत्ताए; ता पेसेहि मे ' । तीए वि गन्तूण कहियं । तेण वि गहियाओ दोन्नि उच्छु-लट्ठीओ निच्छो-लिऊण कयाओ दुयङ्गल पमाणाओ गण्डियाओ, चाउज्जाएण य अवचुणियाओ, कप्पु25 रेण य मणागं वासियाओ, मूलाहि य मणागं भिन्नाओ; गहियाई अभिणव-मल्लगाई, . भरिऊण ताई ढकिऊण य पेसियाणि । ढोइयाई च गन्तूण महावीए, दंसियाणि तीए वि Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org

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