Book Title: Prakrit Kathasangraha
Author(s): Jinvijay
Publisher: Gujarat Puratattva Mandir Ahmedabad

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Page 16
________________ प्राकृत कथासंग्रह नासन्तो वण-सण्डे साहवो पेच्छइ, तेसिं सरणमुबल्लीणो । मा भायसु-त्ति समासासिओ । तेहिं नियत्ता ते तावसा । अणुसासिओ साहहिं धम्मो चेवेत्थ सत्ताणं सरणं भव-सायरे । देवं घम्मं गुरुं चेव धम्मत्थी य परिक्खए ॥ दस-अह-दोस-रहिओ देवो धम्मो उ निउण-दय-सहिओ। सुगुरु य बभ्वयारी आरम्भ-परिग्गहो-वरओ ॥ एवमाइ-उवएसेणपडिबुद्धो पडिवन्नो जिणधम्मं । देवो अत्ताणं दरिसेइ । धम्मे य थिरी-काऊण गओ सुरो । जाव अत्थाणीए चेव 10 अत्ताणं पेच्छइ । एवं सड्डो जाओ। इओ य गन्धाराओ सावओ सव्वाओ जिणजम्माइ-भूमीओ वन्दित्ता वेयड़े कणग-पडिमाओ सुणेत्ता उववासेण ठिओ ‘जइ वा मओ दिवाओ वा' । देवयाए दंसियाओ। तुट्ठा य सव्वकामियाण गुलिया देइ सयं । तओ नियत्तो सुणेइ वीयभए नगरे जिण-पडिमं गोसीस 15 चन्दण-मइयं । तन्वन्दओ एइ वन्दइ । तत्थ पडिलग्गो देवदत्ताए पडियरिओ । तुद्वेश य से ताओ गुलियाओ दिन्नाओ। सोय पव्वइओ। ___ अन्नया गुलियमेगं खाइ मे कणगेण सरिसो वण्णो होउ-त्ति । तओ जाय-परम-रूवा धन्त-कणग-सरिस-वण्णा जाया; सुवण्ण20 गुलिय-त्ति तीए नामं जायं । पुणो सा चिन्तेइ भोगे भुज्जामि; एस राया ताव मम पिया, अन्ने य गोहा । ताहे पज्जोयं रोएइ । तं माणसी-काउं गुलियं खाइ । तस्स देवयाए कहियं ‘एरिस रूववइत्ति' । तेण सुवण्णगुलियाए दूओ पेसिओ । तीए भाणयं 'पेच्छामि ताव तुम'। सो नलगिरिणा रत्तिं आगओ दिट्ठो तीए अभिरुइओ। 25 सा भणइ ‘जइ पडिम नेसि, तो जामि । ताहे पडिमा नत्थि तटाण ठावण-जोग-त्ति रत्तिं वसिऊण पडिगओ; अन्नं जिण-पडिम- रूवं ' काऊण आगओ। तत्थ ठाणे ठवित्ता जियन्तसामि सुवण्णगुलियं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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