Book Title: Prakrit Kathasangraha
Author(s): Jinvijay
Publisher: Gujarat Puratattva Mandir Ahmedabad
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प्राकृत कथासंग्रह
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वाहिं' ? तेहिं भणियं “ सरीर वाहिं । तओ भयवया निट्टहणेण घसिऊण कणय - वण्णा कया अंगुली दंसिया; भणियं च 'अहं सयमेयर वाहिं फेडेमि, तुम्हे जइ संसार - फेडण - समत्था, तो फेडेह-' दो वि देवा विहिय-मणा 'तुम्हे चेव संसार-वाही फेडणे परम-वेज्ज' 5 त्ति पसंसिऊण सक्क - सन्तियं वइयरमावेइऊण देव-रूवेण पणमिउण गया सहाणं । भयवं च कुमारत्तं मण्डलियत्तं च पन्नास-पन्नासं वास- सहस्साइ, 'वास-लक्खं च चक्कवट्टित्तं, वास लक्खं च सामण्णमणुपाऊण गओ सम्मेय-सेल-सिहरं । तत्थ सिलायले आलोयणाविहाणेण मासिएण भत्तेण कालगओ | सणकुमारे कप्पे उववन्नो; 10 तओ चुओ महाविदेह वासे सिज्झिहि त्ति ।
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