Book Title: Prakrit Kathasangraha
Author(s): Jinvijay
Publisher: Gujarat Puratattva Mandir Ahmedabad

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Page 37
________________ 10 बम्भदत्त एयाओ असुभज्झवसाणाओ। जओ असारा परिणाम-दारुणा संसार-परिब्भमण-हेऊ काम-भोगा; निसेविजन्ता वि करेन्ति अहियगुम्माहय, दुहरूवा य ते परमत्थओ; सुहाभिमाणो तेसु मोहविलसियमेव । भाणियं च जह कच्छुल्लो कच्छु कण्डुयमाणो दुई मुणइ सोक्खं । मोहाउरा मणुस्सा तह कामदुहं सुहं बेन्ति ॥ किं च ' भोग-निबन्धणं माणुस्सयं सरीरं केवलासुइ-रूवं चेव सव्वं, अओ न किंचि तंमि राग-कारणं । जओ भणियं सुक्क-सोणिय-संभूयं असुई-रस-वड़ियं । तय-रत्त-मंस-मेयद्वि-मिज-सुक्क-विणिम्मियं ॥१॥ नवेण रस-सोएहिं गलन्तमसुई-रसं । अमेज्झ-कोत्थलो देहं छवि-मेत्तं मणोहरं ॥ २ ॥ आढयं रुहिरस्सेव वसाए अद्ध-आढयं । कुडवो पित्त-सिम्भाणं सुक्कस्स य तदद्धयं ॥३॥ सिरा-सयाइ सत्तेव नव हारु-सया भवे । न सरीरंमि एयमि सुइत्तं किं पि विज्जए ॥४॥ मणुन्नमसणं पाणं खाइमं साइमं वरं । सरीर-संगमावनं सव्वं पि असुई भवे ॥५॥ वरं वत्थं वरं पुष्पं वरं गन्ध-विलेवणं । 20 विणस्सए सरीरेणं वरं सयणमासणं ॥ ६॥ उल्ली दन्तेसु दुग्गन्धा मुहे वि असुई रसो । विलीणो नासिगाए वि सिम्भो वहइ निच्चसो ॥७॥ अट्ठीसु ईसियाइं ति कण्णेसु असुभो मलो । झरेइ रोम-कूवेहिं सेओ दुरभि-गन्धओ ॥८॥ एयारिसे सरीरंमि सव्व-रोगाण आगरे । सुनिच्छियागमो होउ मा मुज्झ मुणि-पुंगव ! ॥९॥ प्रा. क. सं. ५ 15 Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org

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