Book Title: Prakrit Kathasangraha
Author(s): Jinvijay
Publisher: Gujarat Puratattva Mandir Ahmedabad

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Page 14
________________ प्राकृत कथासंग्रह अम्हे जाणन्ता कीस अच्छामो-त्ति पव्वइओ। कालं काऊण अच्चुए उववन्नो। ओहिणा तं पेच्छइ । अन्नया नन्दीसर-वर जत्ताए पलायन्तस्स पडहओ गलए ओलइओ । ताहे वाएन्तो 5 नन्दिसरं गओ। सड़ो आगओ, तं पेच्छइ । सो तस्स तेयं असहमाणो पलायइ । सो तेयं साहरित्ता भणइ भो ममं जाणसि ?' सो भणइ ' को सक्काईए देवे न-याणइ?' ताहे तं सावग-रू वं दंसेइ । जाणाबिओ य। ताहे ' संवेग-मावन्नो भणइ ‘संदिसह किमियाण करेमो'। भणइ ‘वद्धमाण-सामिस्स पडिमं करेहि ! तओ ते 10 सम्मत्त-बीयं होहि-त्ति' । भणियं च:---- जो कारवेइ पडिमं जिणाण जिय-राग-दोस-मोहाणं । सो पावइ अन्न-भवे सुह-जणणं घम्मवर-रयणं । अन्नं च दारिदं दोहग्गं कुजाइ-कुसरीर-कुमइ--कुगईओ। 15 अवमाण-रोय-सोया न होन्ति जिण बिम्बकारीणं । ताहे महाहिमवन्ताओ गोसीस-चन्दण-दारूं घेत्तूण, तत्थ पडिम निव्वत्तेऊण कट्ट-संपुडे छुहइ । पवहणं च पासइ समुद्द-मज्झे उप्पाएण छम्मासे भमन्तं । ताहे अणेण तं उप्पायं उवसामियं । संजत्तियाण सा खोडी दिन्ना । भणिया य 'देवाहिदेवस्म एत्थ 20 पडिमा चिट्ठइ । ता तस्स नामेण विहाडेयव्वा खोडी' । एवं-ति पडिवन्जिय गया वणिया । उत्तिण्णा समुई, पत्ता वीयभयं । तत्थ उदायणो राया तावस-भत्तो। दसिया खोडी । तस्स साहियं सुर-वयणं । मिलिओ ससरक्ख-माहणाइपभूओ लोगो । रुद्द-गोविन्दाइ-नामेण वाहिन्ति फरुसं । तहा हि । केई भणन्ति 25 ‘बम्भो चेव देवा-हिदेवो, जओ सो चउम्मुहो सव्व-जय-सिद्धिकारओ वेयाणं च पणेया '। अन्ने ‘विण्हू पहाणो-त्ति भणन्ति, जओ सो चेव सव्व-गओ लोगो-ववद्द-कारए य दाणवे विणासेइ; संहार-काले य उयर-गयं जयं धारेइ । अवरे 'महेसरो उत्तम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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