Book Title: Prakrit Kathasangraha
Author(s): Jinvijay
Publisher: Gujarat Puratattva Mandir Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 13
________________ उदायण देइ' । थेरेण पडहओ वारिओ। वहणं कारियं पच्छायणस्स भारियं। थेरो तं दव्वं पुत्ताण दाउण कुमारान्दणा सह जाणवत्तेण पत्थिओ। जाहे दूरं समुद्दे गओ, ताहे थेरेणं भण्णइ · किंचि पेच्छसि ?' सो भणइ 'किं पि कालयं दीसइ' । थेरो भणइ ‘एस वडो, समुद्दकूले 5 पव्वय-पाए जाओ; एयस्स हे?णं एयं वहणं जाहिइ, तो तुम अमूढो वडे विलग्गेज्जासि; ताहे पञ्चसेलाओ भारुण्ड-पक्खी एहिन्ति । तेसिं जुयलस्स तिणि पाया । तओ तेसु सुत्तेसु मज्झिल्ले पाए सुलग्गो होज्जासि पडेनं अप्पा बन्धिओ। तो ते पञ्चसेलयं नेहिन्ति । अह तं वडं न विलग्गसि, तो एयं वहणं 10 वलयामुहे पविसिहिइ; तत्थ विणस्सिहिसि । एवं सो विलग्गो नाओ पक्खीहिं । तहि ताहिं वाणमन्तरीहिं दिहो । रिद्धी य से दाइया । सो पगहिओ नीओ ताहिं भणिओ ‘न एएण सरीरेण भुजामो किंचि ; जलणपवेसाइ करेहि ! जहा पञ्चसेला-हिवई होज्जामि-त्ति, तो किह जामि ?' ताहे करयलपुडेण नीओ स 15 उज्जाणे छड्डिओ । ताहे लोगो आगन्तूण पुच्छइ । किं तुमे तत्थ अच्छेरयं दिठं ? ' सो भणइ दिहें सुयमणु-भूयं जे वित्तं पञ्चसेलए दीवे । इसयच्छि चण्डवयणे हा हासे हा पहासे-त्ति ॥ आढत्तं च तेण तयभिसन्धिणा जलणासेवणं । वारिओ य मित्तण 20 'भो मित्त, न जुत्तं तुह काउरिस-जणो-चियमेयं चेठ्ठिय' । ता महाणुभाव दुलहं माणुस-जम्मं मा हारसु तुच्छ-भोय-सुह-हेउं । वेरुलिय-मणी-मोल्लेण कोइ किं किणइ कायमाणि ॥ अन्नं च। जई वितुमं भोगत्थी, तहा वि सद्धम्माणुठ्ठाणं चेव करेसु ! जओ 25 धणओ घणत्थियाणं कामत्थीणं च सव्व-कामकरो। ... सग्गा-पवग्ग-संगम-हेऊ जिण-देसिओ धम्मो ॥ एवमाइ अणुसासणेण वारिज्जन्तो वि मित्तेण इङ्गिणी-मरणेण मओ पञ्चसेला-हिवई जाओ। सड्ढस्स वि निव्वेओ जाओः भोगाण कजे किलिस्सइ-त्ति २ प्रा. क. सं. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102