Book Title: Prakrit Kathasangraha
Author(s): Jinvijay
Publisher: Gujarat Puratattva Mandir Ahmedabad

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Page 20
________________ १६ माकृत कथासंग्रह नाम पट्टणं तस्स नामेण कयं । तत्थ सो अवहरिऊण ठविओ | वीयभयं च सव्वं पंणा पेल्लियं । अज्ज वि पंसुओ अच्छइ । तए णं अभिई- कुमारस्स पुव्वरत्ता- वरत्त-काल-समयंसि एवमज्झथिए जाए 'अहं उदायणस्स जेड-पुत्ते पभावईए अत्तए; मं रज्जे अडावेत्ता सिं रज्जे टावेत्ता पव्वइए । इमेणं माणुसेण दुक्खेण अभिभूए समाणे वीयभयाओ निम्गच्छित्ता चम्पाए कोणिय उवसंपज्जित्ताणं 5 विउल-भोग-समन्नागए यावि होत्था । से णं अभिई कुमारे समणोवासए अभिगय-जीवा जीवे उदायणेणं रन्ना समणुबद्ध-वेर यावि होत्था । तओ अभिई कुमारे बहूई वासाई समणो- वासग - परियागं पाउणत्ता अद्धमासियाए संलेहणाए तीस भत्ताइं छेत्ता तस्स ठाणस्सा णालोइय- पाडेक्कन्ते कालं किच्चा असुरकुमारत्ताए उववन्नो । 10 एगं पलिओवमं ठिई तस्स; महाविदेहे सिज्झिहि-ति । 1 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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