Book Title: Prakrit Kathasangraha
Author(s): Jinvijay
Publisher: Gujarat Puratattva Mandir Ahmedabad
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उदायण
१.१
देवो-त्ति । भणन्ति, जओ सो चेव सिट्टि संहार कारओ अजोणिसंभवो; तस्स चेव भागा बम्भ विन्हू' । एवमाइ - विगप्पणेहिं वाहिजमाणो उप्फेड परसू । एत्थन्तरे आगया तत्थ उदायणस्स रन्नो महादेवी चेडगराय-या समणो वासिया पभावई । एईए काऊण पूयं भणिय
5
गयराग-दोस- मोहो सव्वन्नू अट्ठ- पाडिहेर - जुओ । देवा विदेव- रूवो अरिहा मे दंसणं देउ ||
वाहविओ परसू । पडन्तस्स विघायस्स विहडिया खोडी । जाव दिट्ठा सव्वङ्ग-पडिyoणा अमिलाण मल्ल-दामा-लंकिया वद्धमाण सामि10 पडिमा । अई आणन्दिया पभावई । जाया जिण धम्म- पभावणा । पढियं च तीए
सव्वन्नू सोम- दंसण अपुणब्भव
भवियजण मणाणन्द । जय - चिन्तामणि जय गुरु जय जय जिण वीर अकलंक || अन्तेउरे य चेइय- घरं कारियं । पभावई व्हाया ति-संझं पूएइ । 15 अन्नया देवी नच्चइ राया विणं वाएइ । सो देवीए सीसं न पेच्छइ । अधि से जाया । वीणा - वायणयं हत्याओ भट्ठे । देवी रुट्ठा भणइ ' किं दुई नच्चियं ? निब्बन्धे से सिहं' । सा भणइ ' किं जीविएण ? निक्कलको मम सुचिरं सावय- धम्मो पालिओ' ।
अन्नया चेडिं हाया भणइ 'पोत्ताई आणेहि ।' तीए रत्तगाणि 20 आणियाणि । रुट्ठाए अद्दाएण आहया 'जिण घरं पविसन्तीए रत्तगाणि देसित्ति' । मया चेडी । ताहे चित्तेइ मए वयं खण्डियं; तं किं जीविएणं-ति । रायाणं पुच्छइ 'भत्तं पच्चक्खामि' | निब्बन्धे 'जइ परं बोहेसि' पस्यिं । भत्तपचखाणेण मया देवी देव लोगं गया ।
1
जिण-पडिमं देवदत्ता दास - चेडी खुज्जा सुस्सूसइ । देवो उदा25 यणं बोहेर; न संबुज्झई । सो तावस भत्तो । ताहे देवो तावस - रूवं करेइ । अमिय-फलाणि गहाय आगओ । रन्ना आसाइयाणि । पुच्छिओ कहिं एयाणि फलाणि ? भणइ 'नगर- अदूर - सामन्ते आसमो । तहिं तेण समं गओ । भीमायारेहिं तावसेहिं हन्तुं पारद्धो I
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