Book Title: Prachin Jain Sahitya Me Arthik Jivan
Author(s): Kamal Jain
Publisher: Parshwanath Vidyashram Shodh Samsthan

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Page 8
________________ ( ७ ) प्रस्तुत ग्रंथ में प्रयुक्त जैन ग्रंथ प्राकृत भाषा में लिखे गये हैं। यद्यपि अधिकांश आगम ग्रंथों का हिन्दी और कुछ का अंग्रेजी अनुवाद उपलब्ध है किन्तु भाष्य, चूणि और कथा-साहित्य जिनमें सांस्कृतिक सामग्री अधिक मात्रा में पायी जाती है अभी भी अनूदित नहीं हो सका है। मैंने इन ग्रंथों को इनके मूलरूप में ही पढ़ने का प्रयत्न किया है। भाषा की जटिलता के कारण अनेक स्थानों पर अर्थबोध में कठिनाई भी हुई है । मैंने प्राकृत के विद्वानों से उस सम्बन्ध में चर्चा करके उसे समझने का प्रयत्न किया है फिर भी हो सकता है कि किञ्चित् अस्पष्टतायें रह गई हों। साथ ही मैंने कुछ प्राकृत शब्दों को वैसा का वैसा ही ग्रहण कर लिया है और उनका हिन्दी रूपान्तर नहीं किया है। आशा है विद्वज्जन इन कठिनाइयों को ध्यान में रखकर प्रस्तुत ग्रन्थ का अध्ययन करंगे। हिन्दू स्मृतियों की तरह सामाजिक या राजनैतिक व्यवस्था की दृष्टि से जैन-साहित्य में स्वतन्त्र ग्रंथ नहीं लिखे गये, प्रायः ग्रन्थकार धार्मिक और श्रमण-आचार सम्बन्धी विषयों का विश्लेषण करते हुए प्रसंगवशात् कतिपय आर्थिक विचारों का उल्लेख कर देते हैं। यद्यपि दसवीं शताब्दी के सोमदेव का नीतिवाक्यामृतम् अवश्य ऐसा ग्रन्थ है जो जैनों की सामाजिक और राजनैतिक नीतियों को स्पष्ट करता है। मुख्यतः जैन-साहित्य में आर्थिक व्यवस्था को समझने के लिये हमें विभिन्न ग्रन्थों में यत्र-तत्र बिखरी सामग्रियों का ही सहारा लेना पड़ता है। इस सम्बन्ध में तुलनात्मक अध्ययन के लिये कौटिलीय अर्थशास्त्र तथा जातकग्रंथ जिनका रचनाकाल जैन आगम साहित्य के आस-पास ही है काफी सहायक सिद्ध होते हैं। इनके अतिरिक्त विदेशी यात्रियों मेगस्थनीज, फाह्यान के यात्रा-वृत्तान्त और प्राचीन अभिलेख भी उपयोगी हैं और मैंने हिन्दू साक्ष्यों से तुलना भी की है जिससे इस शोध कार्य की उपयोगिता सुस्पष्ट हो जाती है। किसी भी देश का आर्थिक जीवन उसकी सामाजिक, राजनैतिक और धार्मिक परिस्थितियों पर बहुत कुछ निर्भर करता है। इसलिये आवश्यकतानुसार सामाजिक और राजनैतिक परिस्थितियों का भी वर्णन किया है किन्तु प्रमुखता आर्थिक पक्ष की ही रही है। प्राचीन काल में अर्थव्यवस्था का विभाजन आज की भाँति उत्पादन, विनिमय, वितरण, राजस्व व्यवस्था और उपभोग में नहीं मिलता है। परन्तु मैंने विषय को सम्यक रूप से समझने के लिये अपने शोध-ग्रन्थ के अध्ययनों का विभाजन आधुनिक अर्थशास्त्र के अनुसार ही किया है ।

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