Book Title: Prachin Jain Sahitya Me Arthik Jivan
Author(s): Kamal Jain
Publisher: Parshwanath Vidyashram Shodh Samsthan

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Page 7
________________ आगम ऐतिहासिक दृष्टि से जहां तक प्रस्तुत ग्रंथ की विषय सामग्री की कालावधि का प्रश्न है सोमदेव के नीतिवाक्यामृतम् के कुछ संदर्भो को छोड़कर यह मौर्य काल से लेकर गुप्तकाल तक आती है। फिर भी इसमें अधिक सामग्री गुप्तकाल से ही सम्बन्धित मानी जा सकती है, क्योंकि परवर्ती आगम, नियुक्तियाँ, भाष्य और चूणियाँ-ये सभी लगभग गुप्तकाल की हैं । यद्यपि श्वेताम्बर आगम साहित्य का काल निर्धारण करना तो अत्यन्त कठिन है फिर भी विद्वानों ने उनकी भाषा और विषय-वस्तु को ध्यान में रखते हुये मुख्यरूप से इनका वर्गीकरण इस प्रकार किया है। काल आचारांग प्रथम श्रुतस्कन्ध एवं -ईसापूर्व चौथी-तीसरी शती ऋषिभाषित आचारांग द्वितीय श्रुतस्कन्ध एवं -ईसापूर्व तीसरी-दूसरी शती सूत्रकृतांग कल्पसूत्र, उत्तराध्ययन और -ईसापूर्व पहली शती से ईसा दशवैकालिक बाद पहली शतो (यद्यपि इन ग्रंथों की कुछ सामग्री ईसा पूर्व तीसरी दूसरी शती की भी हैं) शेष आगम ग्रंथ -ईसा की दूसरी शती से चौथी शती (यद्यपि इनमें भगवती का कुछ भाग प्राचीन माना जाता है) नियुक्तियाँ -ईसा की दूसरी शती से चौथी शती भाष्य और चूर्णियाँ -ईसा की पाँचवीं शती से सातवीं शती जैन पुराण साहित्य का काल ईसा की सातवीं-आठवीं शती मान्य है यद्यपि इस सम्बन्ध में भी विद्वानों में मतभेद है। भाष्यों और चूणियों को छोड़कर शेष आगम साहित्य का काल अभी तक भी निश्चित नहीं हो पाया है । यद्यपि ऐतिहासिक गवेषणा की दृष्टि से मैं कालावधि के महत्त्व को समझती हूँ किन्तु विषय-सामग्री से सम्बन्धित ग्रन्थों के कालनिर्धारण के सम्बन्ध में विद्वानों की अनिश्चितता विवश कर देती है और हमें विवश होकर उन्हें उसी रूप में स्वीकार कर लेना पड़ता है।

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