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(२१२) ( ४ ) इस लेख में उन्दान के पुत्र आम्रकार्दव नामक एक व्यक्ति के दान का उल्लेख है । आम्रकार्दव ने काकनादनोट के श्री महाविहार में आर्यसंघ को ईश्वरवासक नामी एक ग्राम या भूमिस्थल मौर २५ दीनारों x का दान दिया था । यह दान दश भिक्षुओं को प्रतिदिन भोजन देने और रत्नगृह में दो दीपक जलाने के लिए किया गया था।
'गुप्तवंश का इतिहास
(रघुनन्दन कृत) पृ. १६१-२ (5) " History of North-Estern India "भा ५९. તેના પૃ. ૪૦ ઉપર આ પ્રમાણે જ છે.
ઉપર્યુક્ત પ્રમાણેથી સ્પષ્ટ રીતે સમજી શકાય છે કે-તે દાન ચંદ્રગુપ્ત મૌર્ય કે ગુપ્તવંશીય ચંદ્રગુપ્ત બેમાંથી કોઈએ
૪ તેને મૂળ પાઠ આ પ્રમાણે છે –
" प्रणिपत्य ददाति पंचविंशतिश्च दीनारान् " पाठ है, डॉ. फ्लीट ने इसे न्याकरणकी दृष्टि से शुद्ध करके " पश्चविंशतिश्च दीनारान् " पाठ दिया है।
એટલે કે પચીસ દીનાર એ તે સમયની પરિસ્થિતિને અનુકૂળ નહીં લાગવાથી રઘુનન્દન શાસ્ત્રી, શ્રીયુત માધવ ભંડારીજીના મત प्रमाणे पंच विशतिः (१००) प्रमाणे शुद्ध रे छ. ते मा प्रभाए
सन् ४००-८ इ० के गहवा के लेख (कोर्प० इन्स० इण्डि. जिल्द, लेखसंख्या ६-७,पंकि ६-७, और १४-१६) में एक ब्राह्मण के नित्य भोजन के लिए दस दीनारों के दान का वर्णन है. “ प्रात्मपुण्योपचयार्थ......पदापत्रसामान्यबामण.........दीनारा दश १०......"
गुप्तवंशका इतिहास, पृ. १६१-२-३.
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